हमको ये इल्म नहीं था
की मामला कब हाथों से छूटता गया,
हम करते रहे इनकार मगर
इश्क होता गया।
हम तो थे अच्छे भले अकेले, प्यार के दर्द से अलबेले,
न जाने कौन से मोड़ पर, वो हम से आ कर मिले,
लगा की कौन मुसीबत, आकर यू पड़ गई गले,
हम दूर भागते जितना, उतना ही राबता बढ़ता गया,
हम करते रहे इनकार मगर
इश्क होता गया।
हम जो कभी न कुछ थे बोलते
वही अब उनसे दिनरात गुफ्तगु है करते,
हम जो कभी न थे मुस्कुराते
वही अब चिड़िया से है चहकते,
हम जो किसी को एक नज़र भी न थे देखते
वही आज उनके दीदार को है तरसते,
जो गैरत थीं संजोई ताउम्र
उनकी चाहत में लूटता गया,
हम करते रहे इनकार मगर
इश्क होता गया।
अब उनके सिवा नही कोई और ख्वाइश,
अब उनके सिवा नही कोई और बंदिश,
अब उनके सिवा नही कोई और हमारा मुख्तार,
अब उनके सिवा किसी से भी नही ये दिल वफादार,
ऐसे ही मै बेरंग उनके रंग में रंगता गया
हम करते रहे इनकार मगर
इश्क होता गया।
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