यूँ तो लिखने को है
सैकड़ों शब्द
शब्दभंडार में
और लिख डाले
न जाने कितने ही
ग्रन्थ,कविताएं इत्यादि
माँ पर
लेकिन
जिनसे है अपना
कल,आज और कल
शब्द कर न पाए उनकी
व्याख्या , एक भी पल
पर हो जाते सारे शब्द मौन
त्याग, निःस्वार्थ सेवा
और समर्पण भाव पर
बनते ही नही वो शब्दों के हार
पिता पर...-
छल कपट भय मुक्त,
शील बुद्धिमत्ता स्मारक,
भविष्य दिशा निरधाराक।
देखा,
देखा आज फिर हारते
ज़िन्दगी को , मौत से
वज़ह
चाह रही नहीं जीने की
देखा आज फिर हारते
मौत को , ज़िन्दगी से
वज़ह
ज़िद, ज़िंदा रहने की
हालात से लड़ने की
हारे दोनों, या जीते दोनों
हारा इंसान , वक्त के हाथों
देखा आज फिर हारते....-
इस मशगूल ज़िन्दगी का यही फ़साना है
अब घर एक सराय है,सफ़र ही ठिकाना है— % &-
मुखौटों पर चेहरे हैं या चेहरों में मुखोटे हैं
कण कण में राम बसे या मन मन में रावण बसे
था उसका यह वहम, है वह परब्रह्म
अहंकारी ज्ञानी ब्रह्म कभी बन न सकता परब्रह्म
कर नारी का तिरस्कार,दिया परम ब्रह्म ललकार
मंत्रणा थी वह बड़ी गुप्त,नियति लिख बैठा चित्रगुप्त
हुआ वही जिस पर वह ब्रह्म अड़े थे
एक रावण वध को आज न जाने कितने राम खड़े हैं..-
जन जन के अभिमान का,
विश्व मे भाषाई पहचान का,
उभरते विश्व गुरु के शान का,
मानस मन के आह्वान का,
नित नूतन वैचारिक आदान-प्रदान का,
आधार है जो....
भारत माँ के भाल की बिंदी,
हैं अपनी राजभाषा हिंदी।-
And they met after ages
On face it was
Flying hair
Innocent smile
Plush fade red cheeks
Cute nose
Magnetic eyes
As
Sign of true love
And glint just as
Kissed by sun at dusk....-
सिलवटें बयाँ कर रही बिस्तर की...
तपिश बची है अब भी रूह के दरमियाँ...
कम हुए ज़रूर है फाँसले जिस्म के...
होनी बाकी है दूर रूह की अभी...-
किसी को मोहब्बत जिस्म से
किसी को मोहब्बत रूह से
हम ठहरे इतिहासकार मिज़ाज के
कर बैठे मोहब्बत
जीवित,मुर्दे खण्डहरों से...-
बुराई बसी जो दिल में
अच्छाई संग बसी जहाँ
करता आज दहन
अंतर्मन, अंतर्द्वंद से
अच्छाई,बुराई का...-