Rishabh Sonker   (*Rishi Raazdar*)
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Joined 24 December 2017


Joined 24 December 2017
25 SEP 2021 AT 10:45

हर मर्ज़ की दवा है सिर्फ तेरा मुस्कुरा भर के देख लेना।
कई बरस गुजर चुके हैं मुझे तबीबों का शहर छोड़े हुए।।

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23 SEP 2021 AT 11:45

*कोरे कागज़ पर जब गिरी उनके आसूँओं की चंद बूंदे...
फिर हमने वो भी पढ़ा जो उसने लिखा ही नहीं...*

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13 SEP 2021 AT 1:13

जो दरम्यां अधूरी रह गईं थी कभी पूरी वो बात करने...
इस फिराक़ में आए थे तेरे शहर तुझसे एक मुलाकात करने...

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11 AUG 2021 AT 11:48

खो जाऊं तेरे ख्वाबों-खयालों की दुनिया में इस तरह...
के फिर हक़ीक़त की दुनिया मुझे झूठी सी लगने लगे...

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10 AUG 2021 AT 11:03

अपने ही शहर में मैं रहता था किसी गुमनाम शक्स की तरह...
फ़कत उसने ही मिल कर मुझसे मेरी पहचान करवायी है...

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8 AUG 2021 AT 23:56

मशरूफ हो गए हैं वो घर की जिम्मेदारियों को निभाने में कुछ ऐसे...
मुद्दतों बाद उसे मुझे भूल जाने का एक बहाना मिल गया हो जैसे...

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3 AUG 2021 AT 11:24

कभी वक़्त से वक़्त मांग कर एक मुलाकात करो मुझसे।
तुमसे मिलकर मैं खुद के बारे में और जानना चाहता हूं।।

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30 JUL 2021 AT 11:44

ये जो तुम्हारी चेहरे की अदा-ए-हयादारी है...
दरअसल इनमें मेरी निगाहों की भी कुछ हिस्सेदारी है...

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21 JUL 2021 AT 1:50

"तेरी तस्वीरों को ही देख-देख कर करने लगा हूं शायरियां इन दिनों।
जाने उस वक़्त क्या बात होगी, जब पहली दफा तुमसे मुलाकात होगी"

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8 JUL 2021 AT 19:05

"न चाहते हुए भी मेरे यारों का शक और गहरा देती हो...
महफ़िल में तिरछी नजरों से देख मुझे जब तुम मुस्कुरा देती हो..."

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