मुलाकातें जब भी हों, शिकायतें हर बार रखो।
उसके जवाब की उम्मीद से पहले अपने सवाल तैयार रखो।।
रौशनायी चराग-ए-मोहब्बत की दिलों मे बरकरार रखनी है गर तो।
उससे मिलने के बाद भी तुम खुद को बेकरार रखो।।-
"सही और गलत में भेद जानते हुए भी जो सिर्फ तुम्हारा साथ दे।
कुछ यारों में ऐसी यारी होनी चाहिए।।"
"किसी ज़ोया की मोहब्बत यहां हर किसी को मिले न मिले।।
मगर हर कुंदन के नसीब में एक मुरारी होना चाहिए।।"
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बहुत सारे सवालों के जवाब मुझे देने पड़ जाएंगे।
गर महफ़िल में गैरों की तरह तेरे सामने से हो कर गुजर जाएंगे।।
रंजिशे मुद्दतों पुरानी ही सही ए ऋषि, रंजिशे तो हैं।
किसी रक़ीब के पूछने पर तुम्हें हम पहचान लेंगे और फिर मुकर जाएंगे।।-
कैसे कह दूं कि किसी को भी खबर नहीं तेरे और मेरे रिश्ते के बारे में।
हर अज़ीज ने देखा है मुझको तुझे माँगते हुए मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे में।।-
मिलेंगे तुमसे कभी तो
एक ज़माने से ये ख्वाब इन आँखों में सजा रखा है...
तुमसे मिलकर हो जाऊंगा
मुकम्मल इक रोज ये आईने को भी बता रखा है...-
"न वो लौटे मेरे खयालों की दहलीज़ पर
न ही उसने फिर मुझे याद किया
इस सोच की कश्मकश में ऐ ऋषि
हमने अच्छा-खासा वक़्त बर्बाद किया"-
"तेरी मासूमियत भरी अदाओं पर हम इस कदर मर गए...
फिर न सफ़र पर निकले और न ही अपने घर गए..."-
गर तेरे शहर में रहते तो यकीनन ऐसी कोई बात न होती।
एक भी शाम यूं न गुजरती जब तुझसे मुलाकात न होती।-
मान ली हमने इस बार भी उनकी बात, बाकी सब बातों की तरह...
सलीके से फिर वो मुझसे फासले खत्म करने में कामयाब रहे...-
कोई परदेस से अपने शहर आएगा, कोई शहर से अपने गाँव जाएगा।
अब सिर्फ त्यौहार ही तय करेंगे ऋषि कि तू कब अपने घर जाएगा।।-