जब तुम्हे सब कुछ मिला है,
हैं अपने, हैं सपने और है माद्दा इतना,
तू महकता है जैसे इत्र का किला है!
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यादें नहीं , कहानियां बनाता रहता हूँ.
Wishes on 17 Oct!
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इस दीपावली, एक दीप जलाएं,
अंतर्द्वंद के विपरीत चलें, ध्येय को प्रबल बनाएं,
सफा करें वो हालात, जो आपके इर्द गिर्द बनाये गए,
खुदगर्ज़ों को उखाड़ फेंके, जीवन को स्वच्छ बनाएं,
जो ऐसा प्रतीत करें, की वो सबसे बलवान हैं,
पत्थर पर राम लिखें, फेंक उसे उन्हें राह दिखायें,
जो ऐसा दर्शाएं, की वो ही यहां विद्वान हैँ,
मूर्ख अट्टहास करते रहें, आप आगे बढ़ते जाएं,
कुछ ऐसे प्रतिबिम्ब हैं, जो सबकी परिस्तिथि समझते हैं,
गपोड़ियों से दूर भागें, जला बारूद आनंद उठाएं,
जैसे हैं वो श्रेष्ठ है, आमरण ये संकल्प बनाएं,
प्रत्युपकार का जमाना नहीं, मुह उठाये कूच बढ़ाएं।-
मैं आग हूँ मैं बाघ हूँ,
मैं चाँद पे सवार हूँ,
डर को हूँ रोज चीरता,
मैं भक्षकों का बाप हूँ,
तिलिसमियों के हलक से,
है जान जब सूखती,
बूंद बूंद कह रही,
ला प्यास बुझा दे मेरी,
मैं वो हूँ जो है सूखता,
फिर टूट के है बिखरता,
हर टुकड़े में प्रवास हूँ,
मैं कांच सा समान हूँ!-
है मौत का डर किसे, मुझपे जुनून सवार है,
कल की राह आज तकुं, मैं कूच को तैयार हूँ,
झकझोरते हैं जो हालात रोज मुझे जोर से,
बस आज जी भर जियूँ, कल तो बेड़ा पार है!
मैं हार अब मानूँगा नहीं, मैं जीत से पल्टउँगा नहीं,
क्या मुट्ठी में होगी दुनिया कल, जरा बुखार मैं उतार लूं,
ये जिंदगी है मेरी सिर्फ, तू क्या समझ पाएगा,
कुछ जमाने के तरीके, मुझपे आजमाएगा,
मैं जगा हुआ कल रात का, सूरज को बता के जाऊंगा,
मैं हारता कभी नही, बाज़ीगर क्या कहलाऊंगा!-
बस तेरे होठों से लेकर, कानों को वापस कर देनी है,
मुझे बातें और तनहाइयाँ, दोनों नहीं सहनी हैं,
अब तू देखे या मुस्कुराये, कौन इंतज़ार करे,
बादल आ गए हैँ, बरसात तो होनी है,
ये तू और तेरा तकल्लुफ, क्या कहूँ अब मैं,
भूलूँ फिर याद करूँ, या याद भूलों की होनी है?
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कुछ तस्वीरें मैं आज भी संजो के रखता हूं,
जो था कल, उसे समेटने में लगा रहता हूँ,
फिर क्या हुआ गर वक़्त हमारा नहीं था,
मोहब्बत तो थी, इसी सहारे जिया करता हूं,
ख़ुद से सच बोलके, एक बात नई पता चली,
शक़सीयत और जिंदगी को, मैं क़रीब बड़ा रखता हूं,
कुछ हुआ अचानक जिसने, सब बदल दिया मुझमें,
उस याद को अब, याद ही रखता हूं,
दिल के कमरे की चाबी, अब दिमाग में रखता हूं!-
जैसी दिखती है, वैसी होती नहीं,
जिंदगी है, वक़्त देती नहीं,
कोई आम कोई खास, बना चला आता है,
फिर अक्सर, सुइयाँ रुकती नहीं,
काश आज, मैं, खुद को ये बता पाता,
हर चीज़, जवान रहती नहीं,
जिंदगी है, वक़्त देती नहीं!-
एक कल था, जो बीत गया, एक कल है, जो सवारना है,
फिर कोई आ गले लगे, इस मुसीबत से निकल जाना है,
जिसने हमें जन्म दिया, क्या उसकी परवाह हुई इधर?
वक़्त का फेरबदल हो चला, अब वापस हमें सब कर जाना है,
रोते हुए आये थे, पर हंसते हुए जाओगे,
गुरूर ये होगा अगर, कितनों को रुला के जाना है!
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एक किस्सा रहा अधूरा सही,
याद हमे भी, याद तुम्हे भी,
नज़रें मिला के फिर पलट जाना,
याद हमे भी, याद तुम्हे भी,
फिर शक्ल ना देखें, तो क्या हुआ,
एहसास अकेले दीदार का,
याद हमे भी, याद तुम्हे भी,
अपनी कहानी में, सब गुम हो गए,
पता उन तन्हाइयों का,
याद हमे भी, शायद तुम्हे भी!-
वक़्त के इम्तिहान में,
भीड़ बीच चला मैं आखिर,
अकेला रह गया,
बात जो थी एक अनकही,
उसी के ज्ञात में,
हंसते बजाते ढोल मैं,
सब कुछ कह गया!-