तुम मुझ में ज़िन्दा रहती हो
जैसे आदमी में बचपना
हर हाल में ज़िन्दा रहता है।-
हे इस क्षण रूपी अभ्यागत!
अपने को तुम्हें सौंपता हूँ
पूरा का पूरा
मैं नहीं हूँ अब
अब तुम ही हो जाओ।
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कई बार शब्द आँसुओं में ढल जाते हैं।कई बार आँसू शब्दों में ढल जाते हैं।
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तुम्हारे साथ न होकर भी
साथ होते हुए
मैं तुम्हें याद करता हूँ
जैसे एक पेड़
अपने बीज को याद करता है।-
जीवन का हर क्षण
आता है हमारे पास
पाहुन की तरह
प्रयास करना
वह हमारे द्वार से
तृप्त होकर
अहोभाव से विदा हो।
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इक रस्ता मुझ तक आया
उस रस्ते को मैंने ठुकराया
इक रस्ते तक मैं गया
उस रस्ते ने मुझको ठुकराया
फिर इक रस्ता ऐसा आया
जिस पर चल के
मैंने रस्ते को
और रस्ते ने मुझको पाया।— % &-
तुम्हें अगर दिख रहा है
अपने कमरे की छोटी खिड़की से
आसमान के थोड़े से
टुकड़े का सौंदर्य
तो कमरे से बाहर निकलो दोस्त
बाहर अनंत नभ की सुंदरता
तुम्हारे लिए बाँहें फैलाए खड़ी है।— % &-
मैंने तुम्हें सुना
बिना ख़ुद को बीच में लाए
वस्तुतः मैंने
स्वयं को ही सुना।-
कभी इश्क़ मिले तो पूछना था कि अक्सर जो तुम्हारे क़ाबिल होते हैं, वो तुमसे महरूम क्यूँ रह जाते हैं?
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एक पलड़े पर प्रेम था
और दूसरे पर संदेह
मैंने प्रेम चुना
क्योंकि संदेह चुनता
तो छला जाता
और प्रेम?
प्रेम में छलना नहीं होता।— % &-