"लिंग रूप जो शिवाय पुजय,
बाल रूप म कृष्ण हो,
सकल मनोरथ पूर्ण होवय,
वृहद हो या कनिष्ठ हो..."
:- ऋषभ क. यदु (शाश्वत)-
मशहूर एक दिन तेरे शहर में मैं, बस अभी नही हूँ।"
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"वो बस एक शहादत की कहानी नही थी,
वो बस एक युवाओं की जवानी नही थी,
कुछ कह गए थे वे, समझने की बात है,
वो बस वतन पर कुर्बानी की बात नही थी,
अल्प उम्र में, जिन्होंने मौत को चूमा है,
स्वप्न देखने के समय मे, देश को चुना है,
अक्सर भटक जाते है रास्ते जिस उम्र में,
उन्होंने निः संकोच अपने राह को ढूंढा है,
और सिख लो उनसे तो कुछ भी मुश्किल नही,
मंजिल मिलेंगी तुमको, कुछ भी अब दूर नही,
ठान लो तो झुक जाती है विपदा कदमों में,
बस कभी जुल्मों सितम पर झुकना मंजूर नही.."-
"न आना मेरी ज़िंदगी में मुझे तन्हा करके,
की चली जाती है तेरी याद मुझे रुसवा करके,
फिर आती है वही रात सताने को मुझे,
जो गुजरी थी कल को मुझे मुरझा करके.."-
"मया के सिंदूर एक दिन तोर मांग म भरहु,
जनम जनम के बंधना तोर गला म पहिराहु,
सात वचन के वादा ल तोर ले करहू,
तोर संग जिहुँ, तोर संग मरहूँ....."-
"सिरतोन कहत हो, अब्बड़ मया करथो तोर ले,
जिनगी म कभू, दुःख नई पावस मोर ले,
जब में खेत जाहु त तै मोर बर बासी धर के आबे,
संघरा बैठ के खाबों, अऊ तै मिठ मिठ गोठियाबे.."-
"लागथे तै मोला भूल गे हस,
मोर मया के डोर ल तोड़ दे हस,
अऊ जब सुरता आही मोर तोला,
तब नई पावस जेला छोड़ दे हस.."-
"रिश्तों के धागे,
छल से जोड़ता है,
वह अपना कभी नही हो सकता,
जो झूठ बोलता है..."-
दु महीना के चाउर फोकक्ट म मिलत हे,
दुकान के आगू म बिक्कट जोरियाय दिखत हे,
जम्मो ह कट्टा ऊपर कट्टा ल डोहारत हे,
फेर कोरोना प्रोटोकॉल के धज्जी बिगाडत हे..-
"छानी के खपरा ह अपने आप लहुटत हे,
आँधी गरेर के पानी ह अब्बड़ दौवत हे,
चूरूर चूरूर चुहत हे तेला कइसे सँभालो,
चारो मुड़ा घर-द्वार म चिखला पानी दिखत हे."-
"वो जानती है कि मैं उसके बिना कमजोर हूँ,
उनके दिखाए सपनों के बिना मैं चूर चूर हूँ,
वो मानती है कि मुझमें अदाम्य साहस है,
और इस साहस की केंद्र बिंदु ही बहुत ख़ास है,
वो फटकारती है कि कहीं मैं भटक न जाउँ,
वो दुलारती है कि किसी मोड़ पर मैं अटक न जाउँ,
मेरे से बहस भी उनसे दो चार होती है,
पर एक मात्र वही है, जो मेरे लिए रोती है,
किस्मत के सितारों को मेरे लिए रोज तोड़ लाती है,
वो सिर्फ मेरी माँ है जो मेरे लिए दुनियाँ से लड़ जाती है.."-