सुकून मिलता है दो लफ्ज कागज पर उतार कर.. चीख भी लेता हूँ और आवाज भी नही होती.....!
आसान नही है मुझसे यूँ शायिरयों में जीत पाना ! मैं हर एक शब्द मोहब्बत में हार कर लिखता हूं !! सामने मंज़िल थी और पीछे उसका वजूद; मैं भी क्या करता यारों;
रुकते तो सफर रह जाता चलते तो हमसफ़र रह जाता। एक उसूल पर गुजारी है ज़िन्दगी मैंने.... जिसको अपना माना उसे कभी परखा नहीं...!-
उठ के पहलू से वह जब जाने लगे
गम के बादल निगाहों पर छाने लगे
जब सितारे शहर के लगे डूबने
अश्कों के दिए अब जगमगाने लगे-
यूं ही चलते रहिए जिंदगी के सफर में इस ट्रेन की तरह क्या पता थकने से पहले एक दिन मंजिल जरूर मिल जाएगी
आज हम जिंदगी के उस मोड़ पर खड़े हैं जहां पर रुके तो सफर छूट जाएगा ना रुके तो हमसफर छूट जाएगा-
दुखिया किसान हम हैं, भारत के रहने वाले,
बेदम हुए, न दम है, बे-मौत मरने वाले।
इंसान बन के आए, गो पाक इसी ज़मीं पर,
हमसे मगर हैं अच्छे, ये घास चरने वाले।
चक्की मुसीबतों की, दिन-रात चल रही है,
करके पिसान छोड़े हमको, हैं पिसने वाले।
दुनिया है एक तन तो, हम आत्मा हैं उसकी,
लेकिन कुचल रहे हैं, हमको कुचलने वाले।
अफ़सोस हाय! हैरत, किस पाप का नतीजा,
सबसे हमी हैं निर्धन, धन के उगलने वाले।
सर पर हैं कर बहुत-से, कर मंे न एक धेला,
घर पर नहीं है छप्पर, वस्तर उधड़ने वाले।
जुल्मो-सितम के मारे, दम नाक में हमारा,
भगवान तक हुए हैं, पर के कतरने वाले।
फुरसत नहीं है मिलती, इक साल काल से है
दाने बिना तरसते, नेमत परोसने वाले।
ऐ मौज करने वालो, कर देंगे हश्र बरपा,
उभरे ‘चकोर’ जब भी, हम आह भरने वाले!-
चेहरों पर मुस्कान दिलों में लेकर खाई बैठे हैं
करके सारे लोग हिसाब-ए-पाई पाई बैठे हैं।
आज बसीयत करने वाले हैं बाबूजी दौलत की
घर में पहली बार इकट्ठे सारे भाई बैठे हैं।-
हर बार मेरे सामने आती रही हो तुम,
हर बार तुम से मिल के बिछड़ता रहा हूँ मैं,
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एक आंसु भी गिरता है
तो लोग हजार सवाल पूछते हैं
ऐ बचपन, लौट के आजा
मुझे खुलकर रोना है-
क्या लिखूँ अपनी जिन्दगी के
बारे में दोस्तों
वो लोग ही बिछुड़ गए
जो जिन्दगी हुआ करते थे-