स्त्री और पुरुष जब परस्पर प्रेम करते हैं, तो एक अलग प्रकार की जीवन में मज़बूती आती है, उससे पहले दोनों मानों सिर्फ एक स्तंभ पर टिकी छत मात्र ही हों,जिसे समुचित रूप से स्थायी भी नहीं कहा जा सकता,स्त्री और पुरुष का परस्पर प्रेम ही उसी छत को 2 खंभों के माध्यम से स्थायित्व एवं पूर्ण विस्तार देता है। फिर अगर एक भी स्तंभ हटा तो जीवन की छत पर असर तो आएगा ही...
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"वो एक झोपड़ी में पूरा परिवार लड़-झगड़ कर भी खुश था,
सुना हैं,
अब नये मकान के कई कमरों में,
सब अलग-अलग ही रहतें हैं"
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"ना ज़िक्र किया..
ना बात की..
रुख़सत दोनों नें ही साथ ली,
तूने मजबूर क़िस्मत मान ली,
मैनें तेरा आख़िरी फ़ैसला.."-
"समझनें समझानें का खेल पुराना है,
तुम कह रहे सब कुछ समझ गए,
पर सच तुमनें अभी मुझे,बहुत थोड़ा ही जाना है।"-
दूरियों से इतना भी न जलाओ किसी को,
की वापस आने तक राख में अपना सिर्फ निशान ढूंढो तुम..-
"साँस रुकती कहाँ है किसी के ख़ातिर,
ज़िंदगी जीने लगा हूँ अब ख़ुद के ही ख़ातिर।"-
ज़िन्दगी टाट की तरह है और रिश्ते उस फटे में सिर्फ और सिर्फ चौबंद लगाते है...
बचानी है या फड़वानी ये आपके और सिर्फ आपके हाथ में होता है..-
मैंने कहा था ना! मैं रुठुंगा नहीं,
बस चला जाऊंगा एक बार कह कर,
अब ना ख़्वाहिश है तुम्हारी,ना कोई ख़ुमारी,
अब हँस मुस्कुरा कर बस!! तुम्हे टाल देता हूँ..-
"मुस्कुराना तो फ़ितरत है हमारी,
ज़्यादा दर्द में भी सिसक कर हँस देते हैं।"-
"ज़िंदगी की पढ़ाई में, डिग्री तो मौत ही है,
जन्मदिन के दिन बस लोग नई क्लास में जाते हैं।"
Written by Mrs.Shubha be_desi-