"गर्व"
सूली के उस पार माँ खड़ी है।
पता है, मुझे वो गर्व से,
मेरी राह देख रही है।
ज़रा रुक जाओ, माँ!
आता हूँ मैं…! ज़रा मेरे बाद,
तेरे देश की चिंता सता रही है।
क्या बोलूँ ? बस यही फ़िक्र…
माँ को इंतज़ार करा रही है…
मेरा बलिदान
नई नस्लों को जगा रही है,
माँ के प्रति पूर्ण समर्पण दिला रही है।
ये देख मेरी चिंताएँ हटा रही है…
और माँ के गोद में,
गहरी नींद दिला रही है…।-
"कागज़ हि है दुनिया
और कलम है सारे इंसान"
"रो लोगे"
हर शख़्स वहाँ नहीं बैठा रहेगा,
जहाँ छोड़ गए थे तुम।
वो न तेरी याद में सिसकता रहेगा,
जिस पल रुला गए थे तुम।
वो भी अपना डगर ढूंढ लेगा,
शोक में मत खो जाना!
जब उसको किसी और के साथ देख लोगे।
सच कहता हूँ!
मैं कविता हूँ,
उस पल तुम बस मुझे याद करोगे।
क्योंकि मेरे सहारे,
थोड़ा सा पन्नों में रो लोगे तुम।-
"पछताओगे"
यूं मोड़ के क्या बनाओगे ?
इतना ताप के कितना पिघलाओगे,
ईर्ष्या, घमंड, अहंकार, अभिमान जैसे ख़राब औज़ार से जीवन को ढालते जाओगे।
क्या जीवन बस यही संघर्ष में उलझाओगे?
याद रखो, तुम भी इंसान हो,एक न एक दिन ठहर जाओगे।
और आगे चलते-चलते सब भूल जाओगे।
फिर अंत में कभी खुद को शून्य नहीं पाओगे।
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वक़्त रहते निकल गया इस उजड़े दयार से,
आख़िर कब तक ईमान खोजता इन ग़ैरों के प्यार में।
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"आवाज़"
शहर में किया आवाज़ दब जाती है,
जोर से चिल्ला के देख लो।
और घर में किया आवाज़,
पूरे शहर तक फैल जाती है,
जोर से चिल्ला के देख लो।
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"संदेश"
"किसी को कलम नहीं मिलता,
मगर चादर-सी सफेद कागज़ सजी मिलती है।
किसी को शब्द नहीं मिलता,
मगर कलम और कागज़ का,
इंतज़ाम ज़ोर रहता है।
वैसे ही उभरते कवि को मंच नहीं मिलता,
मगर दुनिया को संदेश देने के लिए
उनकी कविताएं तैयार रहती हैं।"
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"राज्यतिलक"
"विराजमान हुए नाथ,
हमारे भाग्य की बागडोर संभाली।
प्रेम से पहना मुकुट और
धरती की शान बढ़ाई।
फिर महाराजाधिराज की,
जयकारे संपूर्ण विश्व ने लगाई।
सूर्य देव ने भी अपनी तेज से
राजतिलक में अपनी उपस्थिति दिखाई।
देखो हनुमान जी के नयन,
प्रभु के इस झलक को,
निहारते काफी चैन पाई।
माता सीता भी अपने नाथ को देख,
गौरव और प्रेम का भाव जताई।
फिर सभी ने मिल के,
'जय श्री राम' का मंत्र
पूरे विश्व को दिलाई।"
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"वफ़ा"
"वफ़ा से अब यूं डर हो गया,
देखो न इस युद्ध में मुझे अपने हथियारों पर सन्देह हो गया।"
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"उभरते"
मद्धम पड़े "मार्तंड" को देख,
मेरे अज़ीज़ जश्न की शोर करने लगे।
फिर क्या! उस उभरते "आफ़ताब" को देख
शोक में खोने लगे।
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योद्धा
तलवार लेकर पैदा नहीं होते,
मगर शस्त्र नीति जन्मजात होती है,
ढाल पकड़ना सीखा नहीं जाता,
मगर वक्त हमेशा सीखा देती है,।
योद्धा कभी तजुर्बा से नहीं बनता,
वो हलात है जो ये बना देती है।-