उजड़ी हुई फसले , टूटे हुए सपने और रोता है किसान
ऐ बारिश तेरा यूँ आना कोई खुशी की बात नही
ना दिन देखा ना रात , खून पसीने से फसल को सींचा है
और उस फसल पर सजाये है , ना जाने सपने कितने
उसके सपनो को बाह ले जाये तू , इतना तो एक किसान गुनेहगार नही ...
ऐ बारिश तेरा यूँ आना कोई खुशी की बात नही
बसंत ऋतु में जब तू आती है , घनघोर घटा छाती है
झर-झर गिरता नीर अम्बर से , किसान के चेहरे पर मुस्कान लाती है
मगर यूँ बेवक़्त तेरे अगम पर , तुझे अपना अपना सकू इतनी तो मेरी औकात नही ....
ऐ बारिश तेरा यूँ आना कोई खुशी की बात नही ........
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