मैं एक ऐसी नारी को जानता हूँ
जो खुद पर भरोसा करती है,
जब लोग उसे कमजोर करते हैं
वो अपने निश्चय को स्थिर करती है।
शाम की ढलती निराशा के बीच वो
आशा की किरण बन उभरती है,
"मान लो तो हार और ठान लो
तो जीत" पर वो खरी उतरती है।
अपने साहस और संकल्प से वो
बंदिशो पर अंकुश लगाती है,
कभी कभी अपने निर्णय पर खुद को ही
कोसती है पर सफलता कदम चूमेगी इस
विश्वास से आगे बढती है।
मैं एक ऐसी नारी को जानता हूँ
जो खुद पर भरोसा करती है।
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