जब ज़रा सी बात पर तुम रूठ जाया करते हो..
तब दिल सह़म सा जाता है,हम बिख़र से जाते हैं..
फ़िर ज़रा सोचो...
हम ख़ुद अंदर ही अंदर रो कर भी तुम्हें कैसे मनाते हैं!-
तुम ख़ैरियत तो पूँछते,हम जान देने को हाज़िर थे...
तुम ज़रा सी नफ़रत ही करते, हम तो प्यार करने को राज़ी थे!! — % &-
हम हँस कर सारे ग़म छिपा लेते हैं इस ज़माने से..
क्यूँकि छलकते आँसुओं को भी फ़रेब कहता है ये ज़माना!-
यूँ छोंड़ दिया था कह कर 'प्यार मेरा इक तरफा़ है'
अब तड़पोगेे उसे देख कर 'जो क़हर बन कर बरसा है!!
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बेहद तक़लीफ़ देती थी ना तुम्हें हमारी मोहब्बत?
लो देख लो अब नफ़रत के कह़र की बेरंग बनावट!-
वो बहुत रोयी थी उस रात सिसक-सिसक कर..
जब सब कुछ खो दिया था उसने तड़प-तड़प कर!
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श़राफ़त से सारे रिश़्ते निभाते-निभाते..
थक गयी हूँ सबको ये बताते-बताते!!-
देखो बड़े हुनर छुपा रखें हैं इन 'झुमकों' नें भी..
तुम्हारे एहसास से ही शरमा से जाते हैं!-
सच कह रही हूँ मेरी तन्हाई अब मायूस करती है मुझे..
पर अच्छा ही है इश्क़-ए-गु़नाह से महफ़ूज रखती है मुझे!-
आईने ने हर बार बंदिशे़ं लगाई हैं मुझ पर
हाँ उस रोज़ किसी ने कुछ फेंका था चेहरे पर!-