सिर्फ लफ्जों से हो वो इबादत कहां,
नियत का भी तो हिसाब होता है
बंदगी चाहे खुदा की हो या मुहब्बत की
सिर्फ अल्फाजों से कहां काम चलता है
ग़ज़लों से ही महफिल मुकम्मल नहीं होती,
श्रोताओं का भी उतना ही काम होता है,
जिक्र भर से अंजुमन – ए – शायरी यूं ही नहीं खिलती
शायरों का इश्क में मदहोश होना भी जरूरी होता है !-
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सिर्फ लफ्जों से हो वो इबादत कहां,
ग़ज़लों के बिना शायर की महफिल कहां !-
कोई मुसाफिर से पूछता नहीं तेरी रज़ा क्या है ?
काफिर को काफिरपने से मुहब्बत होती है, मंजिल से नहीं-
ताउम्र ने दस्तक दी थी, तूफानों की उलझन थी..
सौगातों से महकी फिजा में, नियत की कुछ साज़िश थी,
खुशियों के चंद पलो की आहट भी तो बाकी थी,
खुले दरवाजे से क्या लेना देना था,
जब महफिल ही खाली थी !-
Poems ?
They are broken pieces
Which are meant to shread heart
And hollow the soul
But some how manage to
Pick and build and grow into
Something so powerful
That helps the healing process.-
मानो जाने देने की तो रिवायत सी हो गई थी,
इस महफिल – ए – दिल में
कोई दो पल ठहर जाएं, ऐसा नसीब कहां ?-
We can't see intention,of the people
Whom we consider as loved ones
There are times when people
Even very close to us don't
Wish well for us, we might question
Why this is happening,
Why we are not having things
As we wanted
But god knows!
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