घुप्प अंधेरे में,
हल्की रोशनी की ओट लिए,
प्रेम,
संवेदना,
अनुग्रह,
विरह समेटे हुए,
रात चुप्पी साधे,
चली जा रही,
एक नई सुबह लाने को!!
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महादेव की नगरी से हूँ
और महादेव के विश्वविद्यालय से 🙏
काशी हिन्दू विश्वविद्... read more
स्वच्छ गगन, वायु, ताप
सब आज हम पर हँसते दिख रहे हैं,
मानो कह रहे कि,
देखा हमें सताने का परिणाम?
हम सबने तो पहले ही चेता दिया था कि
हे मानव! तुम रहो अपने अपने दायरे में!
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बड़ी चाव से,
लाल नीली कलम से
सजीले सधी सुलेख से
लिखी थीं चिट्ठियां तुम्हारे लिए!
बेल बूटेदार किनारे से
गुलाब की ग़मक से
कुछ शिकवों से
सजाकर रखी थीं चिट्ठियां तुम्हारे लिए!
कई बार चूम कर
आलिंगन कर
स्नेह से शब्दों को संजोते
लिफाफे में बंद करी थीं चिट्ठियां तुम्हारे लिये!
अकस्मात ये ध्यान पड़ा
तुम हँस के कहा करते हो
तुम्हें चिट्ठियां पसंद नहीं!
काग़ज़ के पन्नों पर,
Read full poem in caption!
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अपनी चुनी हुई नज़्मों में,
अपने अनकहे किस्सों में,
उन बिखरते लम्हों में,
क़ैद कर लो तुम मुझे!
कि कभी रुख़सत ना हो पाऊँ,
कभी नहीं, कभी नहीं और कभी नहीं!!
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I like to replay again and again in my mind and wanna relive your thoughts in which only I live and close to you
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पता है!
फिर एक और दिन ढल गया.
हर सुबह की तरह आज भी एक नयी उम्मीद के साथ अलसाई मैं, आँखों को मलते उठी. होंठों पर प्यारी मुस्कान लिए, मन में कई पहलू को नकारते स्वीकारते, कुछ बुनते सुनते, चुप तो कभी ठट्ठा लगाते दिन को कुछ करने की धुन में बीता दिया. पर यह रात बता रही कि ढल गया दिन, अरमानों को अधूरा ही अलविदा कह के! और अब फिर से करना है इंतजार, नई सुबह का!-
Go slowly and steadily
But shine rapidly
Talk less and calmly
But do creatively-
उनके अंदाज़ ए बयां के हुनर को क्या कहें
सुनाने को बेसब्र वॊ तो सुनने को हम रहे
लफ्जों ने कई दफा लबों से चाही आजादी
पर फिर कुछ सोच कर हम चुप रहे!
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तुम टूटते हो
ना जताते फिर भी
तुम सिहरते हो
ना बताते फिर भी
इक नजर की
तलाश है तुम्हें
ना खोजते फिर भी
ले ले इस कंधे का सहारा
तोड़ दे अंदर के बाँध
बहने दे सब सैलाब
खिल उठते हैं जैसे फूल
खिल पाओगे तुम भी
ग़र मेरी मानो तो!
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Spending some good times with close one, that is no one else, it is your soul!
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