दफ़ना चुके या अब भी तुम में आबाद हूँ मैं!
मैं बेक़दर नहीं हाँ बेख़बर हूँ तुम्हारे हालात से,
मग़र तुम्हें क्या ख़बर तुम्हारे बिना बर्बाद हूँ मैं!
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वो तो तूने अपने अर्फ़ों में संभाल रखा है अब भी
वरना गुज़रते वक़्त के साथ ख़र्च मैं भी हो रही!
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की लिखना चाहूँ भी तो तुम्हें मैं कैसे लिखूँ
जिनमें तुम समा सको इतने लब्ज़ कहाँ से लाऊँ !-
ये छांव भी ज़रा दम भरे,
मुस्कान बने रहे चहरे पर
फ़िर चाहे खुशी या ग़म मिले !-
कहने और सुनाने को
मगर मेरे हिस्से
खामोशी ही आई
आंखों में नींद तो बहुत थी
गहरी नींद सो जाने को
मगर मेरे हिस्से
जागती रातें और
बदलते करवटें ही आई
लोग तो बहुत थे
दिल लगाकर दिल्लगी निभाने को
मगर मेरे हिस्से
इंतज़ार और
एकतरफ़ा आशिकी ही आई।-
मुझे नहीं आया प्रेम में
फूल या पत्ते बन जाना
पहले पनपना
फ़िर खिलना
फ़िर मुरझाकर झड़ जाना,
मैं तो प्रेम में
जड़ और डाल ही बन सकी
मुझे आया बस
हर मौसम में
ठहरकर राह तकना ।-
for the words to get beaded
for the rhythm to harmonize
For the poem to born,
But then, I realised
A poem can't take birth ,
as something which takes birth will die
And Poem can never die it's eternal.-