richa   (©Richa)
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Joined 21 September 2019


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14 HOURS AGO

जिंदगी
हार हो या जीत
अपना हो या अजनबी
सुख हो या दुःख
प्यार हो या नफरत
कुछ न कुछ सीखा देती है जिंदगी

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20 JUN AT 18:57

चार लोग क्या कहेंगे,

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18 JUN AT 18:45

Overthinking




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18 JUN AT 18:43

तू है जैसा ,रह वैसा, कोई हिदायत नहीं है

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14 JUN AT 19:34

न कर सके जो बयां लफ्जों में, कभी किसी से
इक हसरत उस ख़्वाब के मुकम्मल होने की है

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10 JUN AT 22:56


थोड़ा है ख़्याल
थोड़ा सा बेख्याल
ये होना चाहे
पहली दफ़ा ये
इश्क़ में जीना चाहे

न सोचें जमाने की
बस अपनी फ़िकर हो
ऐसी कोई नज़्म
ये होना चाहे
पलकों को खुशी से
लबों को हंसी से
फिर भिगोना चाहे

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9 JUN AT 18:06

कहता रहता हूं कुछ ना कुछ,
कहते रहने में ,'न कह पाना' छुपा लेता हूं

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8 JUN AT 14:17

सब टूटा सा बिखरा सा है
कैसे इक आस बनूं
उलझी उलझी सी खामोशी का
कैसे जीवन राग बनूं
टाल रही बेतरतीबी से मरना-जीना
कैसे मरने औ जीने के बीच
इक अदब सा ख्वाब बनूं
सब टूटा सा बिखरा सा है
कैसे इक आस बनूं

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3 JUN AT 14:04

जीवन चलता रहा
अनुभव बढ़ता रहा
मैं बदलता रहा
कुछ बेहतर
कुछ खामोश
कुछ बिखरा
कुछ आज़ाद
बनता रहा

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3 JUN AT 13:54

जब ऑप्शन नहीं होते तो, जीवन कभी सरल को कभी जटिल लगता है।उसी इक रस्ते पर जाने के सिवा कोई और चारा नहीं लेकिन जैसे ही ऑप्शन खुल जाते हैं...इस रस्ते या उस रस्ते में से इक चुनना मुश्किल लगने लगता है।विचारों की टोली, अनुभवों की महफ़िल में गोते लगाने होते हैं,सही - गलत का पैमाना देखना होता है, समाज और घर के दायरे भी याद रखने होते हैं ,याद रखना होता है 'खुद का अस्तित्व' भी। तत्पश्चात कहीं चुनना होता है वो इक रस्ता।जिसके सही होने के जितने चांसेज़ होते हैं, कहीं न कहीं गलत होने के भी उतने।ये तो आगे बढ़कर ही पता होता है...फैसला सही या गलत। अगर गलत तब क्या? और सही तब क्या?

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