ये श्वेत रंग देह से उतर कर भर रहा है अब जीवन में
ये श्वेत सी देह,श्वेत आँखें,श्वेत अश्रु, श्वेत रक्त
श्वेत रंग सी खामोशी गूँज रही है कानो में
दुनिया का स्याह रंग भी जान पड़ता है श्वेत
ना रंग है,ना उमंग,ना भाव बस है रंगो का अभाव।-
कौन कहे किस पल क्या हो!
ऐसी भी हलचल क्या हो!
साथ हमारे,पास हमारे,जब तुम हो!
क्यों सोचें हम कल क्या हो!-
वो अभी तक नही समझा
कि मैं ग़ुस्से में सीधी बात नही करती।
क्या उसने कभी
तूफ़ानों में सीधी बारिश देखी है..?-
फरेबी इस दुनियाँ में
हम ईमान ढूंढने चले है।
अमीरो की दुनिया में
हम सम्मान ढूंढने चले है।
वाकिफ नहीं थे हम “सखी”
इस दुनिया के दस्तूर से।
झूठी दुनिया में हम
सच्चा इंसान ढूढ़ने चले है।-
कब चाहा के हमराज़ बनके चल,
बस तू चल चाहे राज़ बनके चल।
इक सुकून सा रूह को है मिलता,
मेरी तन्हाई में आवाज़ बनके चल।
मैं हवा हूँ, मुसलसल बहती रहूँगी।
तू बहती ख़ुश्बू, मेरे साथ बनके चल।
जबसे तू मिला है, मिली हूँ ख़ुदसे,
हक़ीक़त से दूर, तू ख़्वाब बनके चल।-
तुम कहते हो अक्सर कुछ कहो।
तो लो,आज तुम्हारे जवाब लिख देतीं हूं।
हकीकत ना सही कुछ अधूरे ख्वाब लिख देती हूँ।
मैं ना हो सकी तेरे लबो से वाकिफ।
तेरी आँखो को पुरानी शराब लिख देतीं हूँ
लिखती हूं कि तू ना हो सकेगा मेरा।
पर तेरी वजह से हुईं मेरी आदतें खराब लिख देतीं हूँ।
मैं गर ना लिख सकूं मेरी सच्चाई मगर।
तेरी तारीफ में झूट लाजबाब लिख देतीं हूँ।
तू भी हो जाता वफा की राह में मजनूँ मगर
मैं जब भी लिखती हूँ बेबाक़ लिख देती हूँ।
अश्क मेरे मैं रख लेती हूँ ओर
तेरे जज्बात लिख देती हूँ।
जबाव तेरे अब नहीं मैं लिख पाऊँगी
मगर तेरे सवालात लिख देती हूँ।
लगा के तोहमत मुझपे कत्ल की,
तेरे दिल का नाम हवालात लिख देती हूँ।
कुछ भी बकाया नहीं छोड़ुगीं।
तेरे सारे हिसाब लिख देतीं हूँ।
हकीकत ना सही कुछ अधूरे ख़्वाब लिख देती हूँ।-
इन आँखों से पोछा था,आँसू याद है ?
उस दिन का मेरा कैसा था,हाल याद है ?
आज तलक उतरी नही है लाली
होठों को तुमने कैसे था,चूमा याद है ?
रोज़ चलकर कहि दूर निकल जाते है हम
हाथो में हाथ पकड़ कर रखा था,याद है ?-
लोग पढ़ने लगे है मेरे लफ़्ज़ों में,
तुम्हारे प्यार की शिद्दत।
हमसे अब तुम्हारे इश्क की,
और हिफाजत नहीं होती..!-