तूफ़ान के आने पर,
मैं मजबूती से खड़ा रहा।
धूल का एक कण था शायद,
आंखों में जो पड़ा रहा।
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"लिख लेता हूँ कभी-कभी"
(सुधार सदैव आमंत्रित)
अच्छा लगे तो जरूर साझा करिए, ले... read more
इत्मीनान से बैठकर, आज अपना उसूल लिखा है..
तेरी हर मर्ज़ी के आगे, बस कबूल-कबूल लिखा है !!-
हज़ार बातें लिख कर, हज़ार दफा फाड़ देता हूं।
कड़वी यादों के कब्र पर, ऐसे ही मिट्टी डाल लेता हूं ।।-
सूख गए हैं पत्ते सारे, जन्तु फिरते मारे मारे
खेतों की अनगिनत दरारें, वर्षा तेरा राह निहारे।
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ज़िन्दगी सबकी ऐसी ही चलती है
पहले पहले खुशियां, बाद में फिर अखरती है।-
प्रेम के पाठ्यक्रम से
"रीजनिंग" के प्रश्नों को विलोपित कर देना चाहिए।
अधिक मानसिक योग्यता से
प्रेम, पानीपत का स्वरूप लेता है।
और परिवर्तित करता है "समसामयिक" को
"इतिहास" में।-
वो नफ़ा है।
जो प्रेम में सफल ना हो पाए,
उन्होंने भी तो प्रेम चखा है।
और क्या हुआ जो ले गई सारा समान अपना,
हमने उनकी तस्वीर अपने आंखो में छिपा रखा है।-
गुनगुनी धूप, कड़क चाय और दिसंबर का महीना,
दहलीज पर बैठकर मैं तुम्हें देखते रहूंगा।
मेरे पास बैठकर तुम मफलर बुनना..
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झूठ की है दुनिया साली,
सारी दुनियां झूठी है।
जिस नाव पे मुझे बिठा दिया
वो नाव भी थोड़ी टूटी है।
मल्लाहों का पता नहीं,
वो अपना हिस्सा बांट रहे थे।
मुझे खाने का वो पत्तल मिला
जिसको कुत्ते चाट रहे थे।
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