Reshma Khan   (✍️ izafa ریشم)
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Joined 14 July 2019


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Joined 14 July 2019
19 OCT 2023 AT 16:17

इक इत्र उसकी खुशबू का
एक रंग उसके नूर सा

एक जश्न उसके खयाल का
एक माथा उसके सिंदूर सा

एक इंतज़ार उसके राह का
एक नजदीकी उसके दूर सा

एक शाम उसके नाम का
एक खता उसके बेकुसूर सा

ला इलम नहीं उसकी आंखों से
वो इस क़दर मगरुर सा ..
✍️Izafa ریشما۔



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28 JUL 2022 AT 21:45

मैं स्थिर हूं, मैं तथ्य हूं
मैं प्रचल हूं ,मैं सत्य हूं

मैं मलंग हूं इस सृष्टि से
मैं क्रोध हूं, मैं प्रेम हूं

मैं वाणी बस ऐसी बुनु
मैं दया का ही रूप हूं

मैं विनाश हूं पापी का
मैं ही लीन हूं विलीन हूं

मैं हूं नहीं प्रदर्शन का पात्र
मैं बस आस्था से परिपूर्ण हूं

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12 JUN 2022 AT 15:57

तुम्हें देख कर ही, हर एक शायरी करी हैं
तुम्हारे रंग से ही , अपने हर एक पेज की डायरी भरी हैं

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20 JUN 2021 AT 13:01

पसीने में तर मैंने एक मजबूत नीव देखी है

हर दर्द से लड़ मैंने अब्बा की तस्वीर देखी है

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15 JAN 2022 AT 22:12

चाहती हूं एक
मुकम्मल फ़साना ए किताब ~लिखना~

जिसमें एक शहजादी
किसी शहजादे

एक राधा
किसी कृष्ण की

अधूरी एहसास ए
मुहब्बत की ~गुलाम~ ना हो।

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19 OCT 2021 AT 13:34

ना मजारों पे, ना बातिल ए
तोहम परस्त पर यकीन रखते हैं

इलाह ए इश्क़ वाले तो

सिर्फ रसूल पाक ईमान ए
सदाक़त परस्त पर यकीन रखते हैं

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2 OCT 2021 AT 0:36

वो चुपके चुपके एक किताब लिखते हैं
अपने हर लफ्जों का हिसाब लिखते हैं

वो डायरी में पड़े सूखे बिखरे पत्तों
को मुहब्बत का गुलाब लिखते है

वो हवा को एहसास, बारिश को जज़्बात
चांद को आसमा का अहबाब लिखते हैं

वो महबूब के दिदार ए इंतिज़ार
को माशूक का इज़्तिराब लिखते हैं

वो दिया को नूर , जन्नत को तक़दीर
दहलीज़ पे बैठी मां को रूबाब लिखते हैं

वो खुदा पे यकीन ए ऐतबार अपनो से
प्यार, इसी ख्याल को आदाब लिखते हैं
ریشمizafa✍️












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18 SEP 2021 AT 20:30

रखा ही क्या है देश को विकास दिलाने में
कही भूखे गरीब जी रहे है एक निवाले मे

उन्नति दिख रही हैं अब भी बेशक बहुत
कहीं भाषण ,कही जनता को बहलाने में

कई संस्थान कई स्कूल खोले जा रहे है ?
रोज़गार के नाम पे बस ,जाम के मयख़ाने है

प्रेम का परचम कभी कहलाता था भारत मेरा
अब तो धर्म ही हैं इनका कड़वाहट फैलाने में

देश भी वेश बदल रहा हैं,कोटि नमा इन्हे
बस शहरों का नाम परिवर्तन करवाने में

अब भी समय हैं सुधर जाए, कही देश ही
ना बिक जाए यूंही हिंदू मुस्लिम बटवारे में! ✍️izafaریشم

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10 SEP 2021 AT 18:40

जो मैं बैठी हूं रुख इबादतों में
तेरी रहमतों का बस इब्तिदा ले कर

कैद पंछी सी जीस्त मेरी अब
सुन्नते फर्ज़ नफले सब कज़ा ले कर

ख़ाक हो जाऊं जो मैं ख़ाक से पहले ए,रब
मैं आज़ाद फिरना चाहती हूं तेरी रज़ा ले कर

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5 SEP 2021 AT 8:19

इनकी इंसानियत इनकी नेक दिली का एहतराम करते हैं
इनके कलम के हर अल्फाज़ को हम सलाम करते हैं ।।



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