तुम राज हो मेरी जिंदगी का जिसे नवाज़ा है खुदा ने मेरे लिए
तुमको पाना ख्वाहिश है मेरी और रूह भी मेरी है तेरे लिए
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जुनून हो तो रगों में आग सी जलती है,
हर मुश्किल भी फिर मंज़िल सी लगती है।
ना नींद की चाह, ना आराम का नाम,
बस एक ही ख्वाब – दिन-रात उसका पैग़ाम।
ठोकरें आती हैं तो आएँ, डर किससे,
जुनून जब सच्चा हो, जीत होती है सबके हिस्से।
दिल में उठे तूफ़ान, आँखों में बस एक आस,
हर दर्द, हर थकान बन जाए मधुर प्रकाश।
ये जुनून ही तो है जो रच देता है इतिहास,
वरना भीड़ में सब होते हैं एक जैसे, उदास।
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शीर्षक: "चाय का कप"
नीरा रोज़ ऑफिस में समीर के लिए चाय लाती थी।
वो मुस्कुरा कर कहता — "तुम्हारी लाई चाय में कुछ अलग ही मिठास है।"
एक दिन नीरा जल्दी ऑफिस पहुँची,
देखा — समीर वही बातें किसी और से कह रहा था,
और उस लड़की के हाथ में भी… चाय का वही कप था।
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चलो, दर्द भी साझा कर लेते हैं,
तेरे आँसू, मेरी पलकों में रख लेते हैं।
न कहो कुछ, बस नज़रों से कह दो,
हम खामोशियों को भी साझा कर लेते हैं।
चलो, मुस्कानों की कुछ किरणें चुनते हैं,
ग़मों की राख से खुशियाँ बुनते हैं।
तू साथ हो, तो हर मोड़ आसान लगे,
कठिन राहों को भी साझा कर लेते हैं।
ज़िंदगी को इक गीत बना लेते हैं,
हर लय को मिलकर निभा लेते हैं।
बस तू मेरा, मैं तेरा रहूं सदा,
चलो, हर रिश्ता साझा कर लेते हैं।-
न धन है मेरा, न सोने की खान,
बस कुछ रिश्तों का है मुझ पर एहसान।
माँ की ममता, बाप का साया,
यही है मेरा असली सरमाया।
न काग़ज़ों की गिनती में नाम मेरा,
न हीरे-जवाहर की चमक है घेरा।
पर दिल की दौलत है बेशुमार,
प्यार बाँटा है हर बार–हर बार।
दोस्ती की एक सच्ची मुस्कान,
कुछ यादें जो देती हैं पहचान।
वक़्त की धूप में जो साथ निभाए,
वो छाँव ही तो सरमाया कहलाए।
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इश्क़ कोई सौदा नहीं, जो तौला जाए,
ये तो जज़्बा है, जो दिल से निकला जाए।
नफ़ा-नुक़सान से ऊपर है इसका मोल,
इश्क़ तो बस रूह से रूह तक का है बोल।
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मेरी हिम्मत तू, मेरा इश्क़ भी तू,
हर लफ़्ज़ में बसी मेरी चाहत भी तू।
तेरे बिना तो वीरान सी लगती है शाम,
तेरे नाम से ही रोशन मेरी हर सुबह-शाम।
जिस मोड़ पर भी डर ने रोका मुझे,
तेरा ख्याल बना मेरा हौसला वही।
ना मंज़िल की चाह थी, ना रास्तों का शोर,
बस तेरे साथ चलना ही था मेरा हर दौर।
इक तेरा साथ क्या मिला ज़िंदगी से,
हर ज़ख्म अब लगने लगा है मोहब्बत सा।
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आँसू जो आँखों से चुपचाप बहते हैं,
वो जज़्बात हैं, जो लफ़्ज़ नहीं कहते हैं।
हर बूँद में होती है एक कहानी तेरी,
जो पलकों से गिरे, तो रूह तक बहते हैं।
कमज़ोरी समझ बैठे लोग जहाँ इन्हें,
वो क्या जानें इश्क़ में दिल कैसे सहते हैं।
हम मुस्कुरा के भी तन्हा रह जाते हैं,
और आँसू कह जाते हैं — हम कैसे रहते हैं।
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ख़्वाब थे या कोई रूठी सी बात,
हर रात आते, मगर अधूरे से जाते,
सुबह की रोशनी में फिर खो जाते।
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