जो दिया था उसे भूल जा
मुहब्बत का भी कुछ उसूल था
बेवफाई उसकी आदत ही सही
दिल से तो तू उसे कुबूल था
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दो शब्द तारीफ़ के तुम्हें बे-परवाह न कर दे,
भटका न दे तुम्हें मंजिलों से गुमराह न कर दे
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मेरी जिंदगी का बस इतना सा फसाना है
ज़ख्म सहने हैं सभी फिर भी मुस्कुराना है
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चल पड़ा हूं पगडंडियां पर
बहते हुए झरनों की तरह वेग से
मंजिलों की है तलाश मुझे
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क्या लिखूं आज कलम से मेरी
अल्फ़ाज़ मेरे और किस्से तेरे हों
बस यही ख्वाहिश है कलम की मेरी।
कभी खूबसूरती तो कभी नज़ाकत लिखूं
कभी सादगी तो कभी शरारत
कभी तेरी आंखों को लिखूं कलम से मेरी।
कभी लिखूं ख्वाबों में हुई तेरी बातें
कभी लिखूं तेरे इंतजार की लंबी रातें
कभी तेरे दिन रात लिखूं कलम से मेरी।
क्या लिखूं आज कलम से मेरी........
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छत पर आज मेरी आया है चाँद
देखो कितना शर्माया है चाँद
पूर्णिमा सी चमकती खुद की चांदनी में
आज फिर से नहाया है चाँद ।
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जिंदगी की कशमकश में दिल ए नाशाद हो गया है
कोई आबाद हों गया है यहां कोई बर्बाद हो गया है
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गुलाबों सी खुशबू है तेरे प्यार में
कब से आंख बिछाए बैठे थे तेरे इंतजार में।
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हम सदा तेरे रहेंगे खा रहे हैं ये कसम
सीने में मेरे जो दिल है उसमें तेरा ही नाम है
संग तेरे पतझड़ में भी खिल जाता है ये चमन।
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