Renu Singhal   (रेनू सिंघल)
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ख़्वाब आसमाँ से चुरा कर तो देखो
तक़दीर बुलन्दी की हक़दार होगी ।।
Joined 13 October 2017


ख़्वाब आसमाँ से चुरा कर तो देखो
तक़दीर बुलन्दी की हक़दार होगी ।।
Joined 13 October 2017
22 AUG 2021 AT 14:03

सरहद पर डटा था भाई
बहना ने राखी भिजवाई।
देख के स्नेह की रेशम डोरी
भाई की नम आँखें हो आईं ।
बहना ने चिट्ठी में लिख भेजा
भइया फिक्र न मेरी करना।
देश की रक्षा सरहद पर करना
वचन की लाज सदा तुम रखना।
बचपन की वो प्यारी यादें
घूम गईं आँखों के आगे।
राखी के धागे के बदले
हक से लड़कर लेती थी तोहफ़े।
न मिलने पर मुहँ फुलाकर
घन्टों रोकर दिखलाती थी।
वही बहना अब देश की ख़ातिर
रक्षा धागा भेज कर कहती।
भईया नहीं अकेले मेरे
देश के तुम अभिमान माटी के।
भाई तुमसा पाकर मैंने
तोहफ़ा ये अनमोल है पाया।
राखी के धागे में अपना
प्यार का बंधन है भिजवाया।



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2 AUG 2021 AT 14:05

रिस रहा सीने से मेरे
दर्द बन के ये लहू 
है टपकता आँख से ये
बन के मोती अश्क सा
होंठ मैनें सी लिये हैं
खेलती लब पर हँसी
क्यूँ जमाने को दिखायें
जब कोई अपना नहीं
जख्म ये दर्द भी है
देता यही खुद भी दवा ।


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3 JUL 2021 AT 8:50

एक बीज जो मिट्टी में रोपा जाता है,
सींच कर जब धरती से अंकुर फूट पड़ता है।
तब संघर्ष उसका अपने अस्तित्व का नज़र आता है।
इसी तरह अपने अस्तित्व को पाने के लिए
जीवन रूपी मिट्टी से संघर्ष कर अंकुरित होने पर,
विजयी मुस्कान से ह्र्दय प्रफुल्लित हो जाता है ।

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10 JUN 2021 AT 14:55

मृत्यु का वरण करो
इससे डरना क्यों …
ये तो नए जीवन आगाज़ है ।
जैसे पुराने चोले को उतार फेंक
नए चोले को धारण करना।
सृष्टि का नियम है ये...
शरीर मात्र मिट्टी का आवरण 
आत्मा तो परम् शून्य में विलीन
चल पड़ती है एक नए सिरे से 
पुनः नवसृजन के आरंभ के लिए। 
तो इसका अंत कब हुआ…
ये तो काल चक्र है पुनः-पुनः 
अवतरित होता रहेगा ....
एक नए आवरण के साथ ।



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21 MAR 2021 AT 12:51

देह से रूह को जब सँवारोगे तुम
फिर नये रूप को ख़ुद निखारोगे तुम।
इतना आसान होता नहीं ये सफ़र
मौत को ज़िंदगी से हराओगे तुम ।।

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8 MAR 2021 AT 14:02

हर रूप हर आकार वो लेती
नारी ही संसार को रचती
अर्धनारीश्वर, पुरुष और स्त्री
दोनों के संजोग से ही तो
सृष्टि का हर रूप है सजता
उनसे ही संसार है बसता ।
फिर क्यों नारी अबला कहलाती ।
सम्बल होती बन अर्धांगनी ।
शक्ति का वो स्रोत है होती ।
नारी आदि नारी ही अनादि।

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24 FEB 2021 AT 16:17

सुनो ….
 कभी देखा है...
किसी स्त्री को जो प्रेम में समर्पित हो !
देखना कभी जो मिले ऐसी स्त्री ….!!
उसके चेहरे की चमक …
उसकी खनकती सी हँसी …
उसके अंदाज़ की कशिश …
ये प्रेम तब खिल उठता है 
जब उसका प्रेम शिद्दत से उसे चाहता है ।
मात्र दिखावा नहीं हर रूप में उसे अपनाता है । 
वो जो कहता है करके दिखाता है...
फौलाद सा हौसला वो ज़िगर में रखता है ।
मात्र उसके एहसास से ही….  रेनू सिंघल
रोम रोम खिल उठता है उसका ।
प्रेम में दो आत्माओं का समर्पण
विरले ही किसी को किस्मत से नसीब होता है ।
सदियों में कोई प्रेम ऐसा पाता है …
जहाँ इश्क़ भी रब की दुआ पाता है । 



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15 FEB 2021 AT 22:53

प्रेम में दर्द की पराकाष्ठा तक पहुँचना समझो की उसके धैर्य की परीक्षा शुरू गयी ।अगर आपका ह्र्दय उस पवित्र प्यार का साक्षी है तो ये नियति उसे आपसे जरूर मिलाएगी । बस इंतज़ार और विश्वास ।

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29 JAN 2021 AT 23:15

वक़्त की रेत पर पाँव जमाना पड़ता है
ज़िंदगी की मुश्किलों को हराना पड़ता है ।

जब ठोकर से कदम लड़खड़ाने लगते हैं 
जब अँधेरों से भी हम घबराने लगते हैं ।
छाँव को धूप की छतरी बनाना पड़ता है
हो कोई भी दौर मुस्कुराना पड़ता है । 

रेनू सिंघल

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25 DEC 2020 AT 12:21

ख़्वाब थे सभी जो,अब मचलने लगे
ज़िंदगी की हक़ीक़त वो बनने लगे ।

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