किस तरह आराम त्यज स्वेद बहाकर पिता ने कमाया तुम्हें पढ़ाया आज शिखर पर है तुम्हें पहुंचाया ,कभी नहीं भूलना है तुमको,पिता कभी कुछ ना कह पाता है, मन ही मन सब रखता है।स्वप्न सदा से यही रहते हैं, लहलहाती रहे फसल उसकी,तुम्हें भी सदैव ऐसे ही रहना है कि लहलहाती रहे फसल पिता के हृदय में भी।पिता की मेहनत का मोल यही है...
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वह बोध जिससे संसार में स्वयं की स्थिति से भिज्ञ ,पूर्ण सत्यनिष्ठा से कर्मरत ,प्राप्ति की चाहत नहीं, बस दाता का भाव लिए मानव शान्ति के मार्ग पर चल पड़ता है.....
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मौन हमारी शक्ति बड़ी है
ओढ़े बैठ गए इसे अगर
हर समय हर डगर,तब
अशक्त हमें कर जाती है।
कभी सुधार,कहीं विरोध में
आवाज उठानी ही पड़ती है
अधिक सहन करने वाला
बहुत बड़ा दोषी होता है,
अधिकारों से वंचित होता है।
हक़ की खातिर
मौन तोड़ना अतिआवश्यक होता है।-
जुड़ गया सतगुरु से नाता
हमारा प्रभु से ये नाता ।
लोभ,मोह,माया का पर्दा
पड़ा था मेरी आंँखों पर
सांँसारिक माया का जादू
छाया था इन साँसों पर
आज हटा है जब वो पर्दा
मुझे नजर प्रभु आया
जुड़ गया गया सतगुरू से नाता
हमारा प्रभु से यह नाता।
मंदिर मस्जिद और गुरुद्वारे
गिरजाघर मैं कल तक गई
अज्ञानी अनजानी थी मैं
ना कुछ समझी ना जानी
मैं जहां जहां उसे ढूंढने जाती
वो था मेरे संग संग जाता
दिल था समझ नहीं पाता
ये कैसा है नाता
जुड़ गया प्रभु से यह नाता।
क्रोध घृणा सब छोड़ के
प्यारे,सीखो तुम जीना
हृदय दर्द से तेरा फटेगा तेरा
तुम सीखो उसे सीना
आज गिरते हैं तेरे जो आँसू
प्रभु कल मोती कर देगा
बंदे तू काहे रोता
तेरा प्रभु से है नाता
स्नेह लुटाना है सब पर,दर्द सबके हर लेना
ज्योति से ज्योति जला देना है-
ओ हाथ छुड़ाकर जाने वाले
बातों में रुष्ट हो जाने वाले
एक बार पुकारे,एक बार..
मन में यही मनाने वाले
हृदय का नाद छिपाने वाले
मन ही मन मुस्काने वाले
जब क्रोध नहीं कर पाते हो तो क्यों करते हो,
जब छोड़ नहीं जा पाते हो तो क्यों जाते हो?
पूजन ध्यान में मन रमता है
मन को कुछ और नहीं भाता है
कहो कि प्रेम को कैसै देखूँ
कैसे उमड़ूँ कैसे घुमड़ूँ
मुझको रास नहीं आता है।
मुझे जोगन जोगन कहने वाले
विवाह से पुर्व ही सोच समझ लेना होता है,
नहीं विचारे तब अब क्यों शीश धुनते हो?
ओ हाथ छुड़ाकर जाने वाले
जा नहीं पाते हो तो क्यों जाते हो?
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जागो रे !
रात्रि वर्षा में भींगी है मिट्टी
मोगरे,गुलाब,पके आम्र के संग,
अगरूवर्तिका चन्दन की सुगंध ,
मंत्रोच्चारण एवं घंटी की ध्वनि
ऊषा की किरण तम छाँटती है।
है रच रही मंजु अनुपम प्रभात
देखो! तड़ाग धो रहा कितने
आवरण की मलीनता का ढेर ।
साथ गाता जा रहा..जगा रहा...
जागो रे ! जागो रे ! जागो रे ! ..हे!...
काआंँखें दुखती नाही मींचे सोए
पूरब मे जगा सूरज,पंछी जगे...
तुम्हरी सुबह काहे होती नहीं?
जागो रे! जागो रे! जागो रे !... हे!...
-रेणु शर्मा-
अच्छा लगता है समय निकाल कर दोनों का साथ बैठना।
अच्छा लगता है घर परिवार की बात करना।
अच्छा लगता है बच्चों के भविष्य को इस पल बुनना।
अच्छा लगता है ज़िन्दगी को खूबसूरती से जीने के लिए एकदूसरे का हौसला बढ़ाना।
बच्चे मुस्कुराते कहते हैं कि पापा मम्मी को चाय की तलब रहती है.......-
सरल,सुंदरी सुकुमारी
बाला जो प्राणों से प्यारी,
कैसै ऐसे को सौंप दें?
माता-पिता की विकलता
मुनि बातों से थी बढ़ती जाती।
अनुशीर्षक में........
-रेणु शर्मा
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साफ़ हवा है खुला आसमान
आओ ,कर लें मन की बात
स्वच्छ हृदय में प्रभु का वास।
बीती बातों का क्या करना है,
मन कटुता से क्यों भरना है,
क्रोध ,द्वेष यह क्यों करना है,
कहो,कल को किसने देखा है,
बीती बातों का क्या करना है?
सदैव नेकी ही याद रखना है
बाकी सब दूर, परे धरना है,
जग रचने वाले का कहना है।
मन कटुता से क्यों भरना है?
-रेणु शर्मा
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नित प्रतिक्षण खिलती माटी पर
एक अजब सा पौधा उग आया।
वह तीव्रता से बढ़ता जाता था
उर्वरता ना जाने कहाँ से पाता था।
अभी कुछ ही दिन रात बीते थे कि
वहाँ विशाल विटप नज़र आया था।
बरोह विराट वट सी लटक रहीं थी
उपवन में जाते ही जकड़ लेती थीं।
कहीं किसी तंत्र मंत्र का फेरा ना हो
कहीं कोई किया काला जादू ना हो...
भयभीत मन का उपवन शुष्क हुआ था
एक प्रात आकाश में रवि मुस्काया था।
यह विकलता का ही परिवर्तन था
डर तो मन की उपज है होती
हृदय पुलकित छवि देख रहा था।
आज भी उपवन पुष्पित अपना था
भयावह विटप तो कोरा सपना था।
-रेणु शर्मा
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