अस्पतालों में कटती रातें साबित करती हैं
जीवन की अस्थिरता को,
जब दीवारें ताकते हुए सारा वक्त गुज़रता है
तो सामना होता है उन तमाम सवालों से
जो रोज़ मर्रा जीवन जीते हुए पीछे छूट जाते हैं
ताजुब है ये सवाल जीवन को ही कुरेदते हैं
ऊपरी सतह पर से मिट्टी हटाकर
मृत्यु के आईने में चेहरा देखा जाता है
ज़रा घबराते हुए,भारी दिल के साथ
संशय होता है स्वयं के होने का
संशय होता है जीवन को जीने का
उलझन हो जाती है सच्चाई को जानने में
अपने आप को बहुत छोटा महसूस होता है
इस दुनिया की भीड़ में तुम्हारा दर्द
हवा में गुलछरियां उड़ाता हुआ
तुम्हारा मज़ाक उड़ाता है
और हंसते हुए कहता hai- नहीं समझा ना जीवन कैसे जीना है
मौत के हासिल होने के ठीक पहले तुम सब समझ जाओगे
तुम्हें एहसास होगा कि कौन तुम्हारे लिए कितना अहम था
डॉक्टर द्वारा जब घोषित किया जाएगा कि –
तुम्हारे बचने की कोई आस नहीं
तब कैसे ग़ुज़रोगे जीवन के आखिर पल?
संशय में या संतोष में?
ये तय होगा तुमने संपूर्ण जीवन कैसे जीया है।
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सुबह की चाय के साथ उमड़ते ख्याल बताते हैं आपके लिए सबसे ज़रूरी क्या है।
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At the midnight stroke, when you are alone in a weird city
Missing your loved ones all at the cost of your dreams
Does life work this way?
Or when you are willing to speak out your heart aloud but you find no one out there for you,
Does life work this way?
Having all the regrets, tears, pressure in your head and not able to sleep
Want to cry like a hell but can't do that
Does life work this way?
Keeping your eyes closed just to get off everything and to take a long sigh with thoughts running in your head,
Does life work this way?
How does the life work nobody knows, it's better to deal with life just like a fact.......
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सुबह उठते उठते ज़रा सी फुर्ती लाकर लगता है
दिन अच्छे से गुज़रेगा,
काम में खोएंगे जब तो एक ज़िम्मेदारी का एहसास होगा,
और एक सुखद अनुभव होगा कि हम ज़िम्मेदारी पूरी कर रहे हैं-
मैं शायरी वाली लड़की
तुम्हे देखकर नज़्म लिखती हूं
फिर अपनी मौत के मर्सिये पढ़ती हूं
तुम हमेशा मुझसे अलग थे,
फिर भी तुमने मुझे मुझ जैसा बनाया
दुनिया की बस्ती में दीवाना बनाया
बहारों में खुशबू जगाई, और जीवन कुछ पल के लिए सुहाना बनाया
जब मैं सोचती थी कि मैं क्या हूं,तो खुद को बाध्य कर देती थी
तुमने मुझे कुछ न बनाकर आज़ाद बनाया
मैं शायरी वाली लड़की
तुम्हे देखकर नज़्म लिखती हूं.....-
मेरी कहानी के सभी किरदार
किसी पोशाक को सुंदर बनाते कंट्रास्ट से हैं
हर किरदार में विद्रूपताएं, सहानुभूति, अच्छाइयां और क्षमताएं हैं
वे किसी सफेद कैनवस को रंगीन बनाते हैं और
एक खूबसूरत चित्र को उभार लाते हैं
उनकी अपनी विशेषताएं हैं लेकिन बिना एक दूसरे के ये सभी किरदार अधूरे दिखाई पड़ते हैं
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Chandi ke pattal c aasha thi meri...
Reton mein firti abhilasha hai meri..
Sone ke dhagon se pinjara buna hai...
Jo duniya bole vo duniya hai meri..
Smnndr kinare jo kshti ruki hai...
Zra sa Pani se st k khdi hai..
Hlki c koi lehr Jo aaye..
Lehron mein jhume vo lehron mein gaaye...
Fulon ki chadar na suhaye bdn ko....
Hsna jb na aata ho man ko...
Jo bhi hai apne sda sath rkhna....
Hr koi seh na pata virah ko....
Aankhon mein soyi hui ik nmi c...
Dikhti mile jb pairon ko zamee c...
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लग रहा है कि दिल संभल रहा है
लेकिन फिर एक दिन जब तुम्हारा
एहसास मेरे भीतर बेरहमी से उतरेगा
जब आंखों में आंसू और सीने में सूनापन होगा
दिल बेसहारा हो चीखेगा
सिर पकड़कर बैठी होऊंगी किसी दीवार से सट कर
और तुम्हारी यादें किसी बिम्ब के रूप में कोहराम मचा रहीं होंगी
फिर एकाएक लगेगा तुम्हें भूलाना असंभव है
असल में किसी को भी भूलाया नहीं जाता
पर्दा डाला जाता है केवल साथ बिताए पलों पे और एक अजीब सी कमी की लौ सी दहकती है सीने में
ये सूनापन कोई नहीं पूरा कर पाता
वक्त के साथ आदत हो जाती है और
धुंधली हो जाती हैं यादें वक्त के साथ ही
फिर तुम्हारे याद आने पर दुःख दर्द और आंसू
जल्दी से नहीं आते
आती है तो एक आह! जिसमें ना सुकूं होता है और ना ही राहत, होता है तो एक आदत का एहसास, और कुछ अधूरे को पूरा न कर पाने की असमर्थता
मुझे तुम्हें निहारने के लिए किसी चित्र की आवश्यकता नहीं
आंख बन्द करने मात्र से ही तुम्हारी तस्वीर अनायास ही उभर आती है
किंतु तुम्हें देखकर भी मैं मुस्कुरा नहीं पाती क्योंकि अश्रुओं की धारा, हृदय के गहरे समंद्र से निकलकर आंखों से बहने लगती है
इन आंसुओं में ज़रा भी छल कपट नहीं होता
होती है तो सिर्फ सत्य प्रेम की छवि, वियोग की पीड़ा और तुम्हारी मेरे जीवन में न होने की कीमत!
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बुरे हालातों से ख़ुद को निकालकर
मेहनत के रंग में डालकर
मैं कुछ तो कर दिखाऊंगा
जीवन का कोई लक्ष्य है
जो पूरा करके जाऊंगा
मैं कुछ तो कर दिखाऊंगा
दुख के द्वार भेड़ के
मैं रौद्र तार छेड़ के
अग्नि के प्रभाव से
ज्वलित सा हो जाऊंगा
मैं कुछ तो कर दिखाऊंगा
ऐसा नहीं कि मुझे सही गलत का ज्ञात नहीं
या मुझमें वो बात नहीं
कोयलों की खान से मैं हीरा बन के आऊंगा
मैं कुछ तो कर दिखाऊंगा
मैं लगा दूंगा जितना मुझमें सामर्थ्य है
मेरा इस जहां में होना इसका कुछ तो अर्थ है
मैं लक्ष्य को पाने को लोहे सा तप जाऊंगा
जैसी भी होगी परिस्थित उससे लड़के जाऊंगा
मैं कुछ तो कर दिखाऊंगा
समय से दोस्ती कर मैं
काल में बह जाऊंगा
जिस राह होगी मंज़िल मेरी
मैं उसी राह हो जाऊंगा
मैं कुछ तो कर दिखाऊंगा
शून्य से आया था मैं और शून्य में मिल जाऊंगा
लेकिन इस घड़ी के बीच कुछ अलग कर जाऊंगा
मैं कुछ तो कर दिखाऊंगा-
मैने दरिया के पानी से कहा ...
मेरे आँसुओं को भी तो जगह दो ...
उसने मुझे कहा पहले अपने-आप को तबाह कर दो
दीवारों का खूबसूरत रंग भी मेरा मजाक उड़ाने लगा
अपनी शक्ल देखने चले हो
ज़रा आईना तो साफ़ कर दो
चद्दर की सलवटों ने भी कहा
अपने अंदर जो दिल है उसे बेकार कर दो
अलमारियों के बंद दरवाज़ों ने ख़ुद को खोला
कहा जितने भी काम है ... सब बेगार कर दो
अपने आप को तुम दुश्वार कर दो
बस एक चिराग़ ने मुझसे धीरे से कहा
इन सबकी बातों को तुम नज़रंदाज़ कर दो
और अपने ख्वाबों को आज़ाद कर दो ...
यूँ तो सारी उम्र कहती रहेगी दुनिया
छोड़ो दुनिया को भी एक बार और माफ़ कर दो
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