क्या इतने ही बे-गै़रत थे तुम,
कि खुद की ना-कामयाबी के मलाल में मेरा घर भी उजाड डाला ?
ये कौन सा खोखला रिश्ता है बताओ हमें भी,
धड़ से अलग हमें करते हो ,
और ज़ख्म से पिल-पिला तुम उठते हो ?
ये कैसी बे-तुकी बात है देखो,
दिन में हाथें मरोड़ते हो ,
और रातें तुम्हारी सुहानी हो जाती ..
कुछ तो बात ज़रुर है ,
यूँ ही नहीं तूममें ईतना गुरूर है ..
ना-मर्द हो ?
या मर्दानगी जताते हो?
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