आदत बुरी ही सही, पर मैं सबको अपना मान लेता हूँ महफ़िल में, कुछ लोग नापसंद करते हैं मुझे ये जानते हुए भी, मैं मुस्कुरा देता हूँ जो साथ खड़ा होना भी, नापसंद करते है उनके साथ भी मैं, घंटों बिता लेता हूँ
सुनिए, टूट कर कहाँ जाओगे II टूटी हुई भगवान् की मूरत को भी लावारिस छोड़ दिया जाता है जितनी शिद्दत से तुम्हे सजाया था न किसी ने, उतनी बेहरमी से तुम भी, निकाल दिए जाओगे