चहरे की जरूरत नहीं बस तुम्हारा ऐतबार काफी है
घुंघट कोई पहरा नहीं बस इंतजार अभी बाकी है
-
न जाने प्रकृति ने कितने रंग बिखेरे
तन की सुंदरता से क्यां लेना
मन की सुन... read more
खूबियां में हमारे अब वो गम नहीं था
कोन समझाए उन्हें जिसकी फिदर में हम नहीं था
महफिलें उनसे वो समझे मुकम्मल नहीं था
गलतफहमी मैं न जाने उनके ,कितना दाम था
-
जा जाने वाले मैं इंतजार नहीं करती
झूठ के साथ मैं जीवन बर्बाद नहीं करती
अकेले चलने का मैं दम रखती हूं
खुलकर जीने का कुछ तो हक रखती हूं
तुझसे न सही मैं खुद से ऐसा नाता रखती हूं
चुटकी भर ही सही मैं खुद से ऐसा प्यार करती हूं-
प्रेम की ख्वाहिश रखती हूं मैं कविता की डोर से
तुम वो बिखरी स्याही हो ,ख़त की हर ओर से
न गिला न शिकवा है इस पन्नों के बोझ से
मिल ही जाओगे कभी इन शब्दों के बोल से-
खोकर तुम्हें पाना सीख गई
थोड़ा ही सही खुद को जताना सीख गई
धीरे-धीरे ही सही दिल लगाना सीख गई
कद्र न हो जहां वहां बहाना बनाना सीख गई-
कोई कहीं है तो कोई कहीं है
मेरे लिए शायद ये नयी जमी है
विश्वास कम पर आत्मा यही है
भगवान का साथ फिर क्या कमी है
-
जब विश्वास टूटता है जनाब तब रिश्ते ही नहीं टूटते
बल्कि टूट जाते हैं हर जस्बात जिसे उम्रभर समेटा नहीं जा सकता
दहलीज के दायरों से अंदाज बदल जाते हैं
जो थे कभी अपने वो कुरुक्षेत्र में नजर आते हैं
यूं ही गिला नहीं समुद्र को मीठे पानी से
खारा हो जाना अच्छा था अपनों की बुराई से-
राख से दोस्ती की है जनाब अंगारों से खेलना आता है
आप क्या बदनाम करोगे हमें , हमें खुद बदनाम होना आता है
यही सड़क यही गांव यही हमारा ठीकाना है
तुम चाहे लाख कहों हमें विश्वास बस खुद को जानने में आता है-
अक्षरों की लड़ाई में, बदनाम कागज़ हुए
पन्ने कुछ जल गए, कुछ यूं ही गुमनाम हुए
माना उंगली तुमने उठायी, हम भी तो आग हुए
जल ये क़तरे भी , राख कहां अनजान हुए-