जवाब मिलता तो तब जब मुझे जान लेते
दिल की कहानी कहने से पहले हमारी चुप्पी से हाथ थाम लेते-
न जाने प्रकृति ने कितने रंग बिखेरे
तन की सुंदरता से क्यां लेना
मन की सुन... read more
मेरी सबसे बड़ी लड़ाई मेरे अभिमान से है
जिसे गिराया भी नहीं जा सकता और बढ़ाया भी नहीं जा सकता
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जिस संसार को मेरी फ़िक्र नहीं उस पर न जाने क्यों मिटती हूं
हर रोज कि नयी कहानी में न जाने क्यों एक सी दिखती हूं-
बड़े हिसाबी है लोग यहां
मुक़द्दर का हिसाब कर गए
तोड़ फूल डाल से
जड़ों का एहसान बता गए-
चहरे की जरूरत नहीं बस तुम्हारा ऐतबार काफी है
घुंघट कोई पहरा नहीं बस इंतजार अभी बाकी है
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खूबियां में हमारे अब वो गम नहीं था
कोन समझाए उन्हें जिसकी फिदर में हम नहीं था
महफिलें उनसे वो समझे मुकम्मल नहीं था
गलतफहमी मैं न जाने उनके ,कितना दाम था
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जा जाने वाले मैं इंतजार नहीं करती
झूठ के साथ मैं जीवन बर्बाद नहीं करती
अकेले चलने का मैं दम रखती हूं
खुलकर जीने का कुछ तो हक रखती हूं
तुझसे न सही मैं खुद से ऐसा नाता रखती हूं
चुटकी भर ही सही मैं खुद से ऐसा प्यार करती हूं-
प्रेम की ख्वाहिश रखती हूं मैं कविता की डोर से
तुम वो बिखरी स्याही हो ,ख़त की हर ओर से
न गिला न शिकवा है इस पन्नों के बोझ से
मिल ही जाओगे कभी इन शब्दों के बोल से-
खोकर तुम्हें पाना सीख गई
थोड़ा ही सही खुद को जताना सीख गई
धीरे-धीरे ही सही दिल लगाना सीख गई
कद्र न हो जहां वहां बहाना बनाना सीख गई-
कोई कहीं है तो कोई कहीं है
मेरे लिए शायद ये नयी जमी है
विश्वास कम पर आत्मा यही है
भगवान का साथ फिर क्या कमी है
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