एक आस जो ढल कर आंँसू बन गई
बस एक आस ही बच जाती है पास मेरे कि शायद कभी तो मेरा और तुम्हारा आमना सामना होगा एक रोज़ पर ये आस ज्यादा देर जिंदा नहीं रहती है ज्यों ज्यों दिन ढलता है ये आस भी ढलते ढलते आँसू की बूँदे बन जाती है और जा छिपती है तकिए की तहों में जहाँ से खोजने पर भी दुबारा नहीं मिलती है, मिलता है तो इंतज़ार एक नई आस और तन्हाई का साथ जो धीरे-धीरे दिलासा देते हैं कि शायद नई सुबह हंँसती हुई गले मिलेगी और हर कमी दूर होगी।
(अनुशीर्षक में पढ़िए ....)
दिल के एहसास। रेखा खन्ना-
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पीले पलाश के
मौसम में
क्यों लाल गुलमोहर
खिल उठा था
ये कैसी दस्तक दे
रहा है मौसम
क्या रूठी हुई
मोहब्बत को
फिर से मेरा पता
बहारों से मिल रहा था?
दिल के एहसास। रेखा खन्ना
( अनुशीर्षक में पढ़िए पूरी कविता ....)
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हर बार मोहब्बत करते हैं हर बार तड़पते हैं
तुझे भूलने की कोशिश में याद तुझे ही करते हैं।
दिल की उदासियां फैल गई हैं साँझ के रंगों में
अँधेरों को लगा कर गले, यादों से तेरा हाल पूछते हैं।
दिल के एहसास। रेखा खन्ना-
The lost shadows are awaken
Spreading their arms to steal the peace
Deep down somewhere in the core of the heart
A city of unknown thoughts is breathing
The lost me is wandering around in search of the safe place
The shadows of the past are continuously following me
Unknowingly I myself is leaving behind a trail of bleeding emotions
No grave is ready to accept me before I clear the debts of my particular do’s and don'ts
Slowly slowly I myself is turning into a shadow of forced burdens
Burdens which are capable enough to kill me in one perfect shot
Burdens are acting like a slow poison just to enjoy my slow death and turn into a long-lasting shadow.
Rekha Khanna
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एक ज़ख्म ताउम्र मुझ में सफ़र करता रहा
तन्हा था रास्ता था जिस पर मैं चलता रहा।
जाने कब, किस वक्त ज़ख्म मुझे था भेंट में मिला
मैं उसे जिंदगी समझ बार बार गले मिलता रहा।
इश्क़ का कलमा मैं इबादत समझ पढ़ता रहा
नज़रें फेरते रहे वो, मैं जान कर अनजान बनता रहा।
गर्दिशों में था किस्मत का मारा, तारा मेरा
मैं कायनात को रूठा समझ दिन-रात कोसता रहा।
बाद उसके फिर कभी ना सुबह हंँसती हुई मेरी
मैं दिन के उजालों को भी घना अँधेरा कहता रहा।
साँझ को हर रोज़ अँधेरों में गुम होते देखता रहा
मैं तन्हाइयों का पाला था, उनको ही जिगरी समझता रहा।
ख्वाब जो बंजारों से फिरते थे आँखों में यहाँ वहांँ
थक हार कर मैं उनकी कब्र, आँखों में ही खोदता रहा।
कहने को तो जिंदगी से ना शिकवा था ना गिला कोई
मैंने जब भी झाँका भीतर अपने, खुद से उलझता रहा।
वक्त सदा ही मेरी चाहतों को दरकिनार करता रहा
और कितना खुद को परखूंगा, मैं वक्त के हाथों मरता रहा।
बात बस इतनी सी है गर समझ सको तो समझ लेना
इम्तिहान-ए-जिंदगी एक ना ख़त्म होने वाला रस्ता रहा।
दिल के एहसास। रेखा खन्ना
©dil_k_ahsaas
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What about ED and Income Tax department....they will also keep coming with new new theft charges.
🤣🤣🤣🤣
I am happy with my limited hard earned money.
Rekha Khanna-
मुझे यकीं है कि एक दिन
मेरे हिस्से की धूप लौट कर आएगी
वक्त की धुँध की दीवारों को भेद कर
साँझ के अनगिनत रंगों को चुरा कर
सुबह की सुनहरी लाली में बदल कर
ओढ़ा जाएगी एक रंग-बिरंगी ओढ़नी मुझे
जिसे फिर कभी कोई धुँध निगल ना पाएगी
और तब मेरे हिस्से की धूप सिर्फ मेरी होगी
और मैं, मेरे हिस्से की धूप उन लोगों में बाँट दूंँगी
जो मेरी तरह एक उजली किरण की आस में
जाने कितनी मन्नतों को जाने कितनी गाँठों में बांँध चुके हैं
पर अब तक मन्नत पूरी होने पर एक भी गाँठ ना खोल सके कभी।
( अनुशीर्षक में पढ़िए पूरी कविता ....)
दिल के एहसास। रेखा खन्ना-
ख्याली बारिशों में भीगती देखो।
ख्वाब रिस रहें हैं आंँखों से
जज्बातों की नदी बहती देखो।
(अनुशीर्षक में पढ़िए पूरी बिना बहर की ग़ज़ल....)
दिल के एहसास। रेखा खन्ना-