Rekha Girish  
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Joined 31 August 2017


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Joined 31 August 2017
2 JUL 2022 AT 23:11

साथ सभी का दीजिए, यह भी है एक योग।
सारी दुनिया चाहती,  आपस में सहयोग।।

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23 JUN 2022 AT 22:51

मरने का डर खत्म हो गया अगर
समझो जीना आ गया

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23 JUN 2022 AT 22:37

तब याद बहुत आओगे

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23 MAR 2022 AT 21:46

मौन की आवाज सुन लेते अगर।
आंख नम भी थी, नहीं देखा मगर।
पर शिकायत भी रही थी आपकी-
गैर इतने भी नहीं थे हमसफर।।

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31 JUL 2021 AT 0:15

जुबां चुप लाख हो फिर भी ये आंखें बोल जाती है।
छुपा लो फेर लो मुख फिर भी आंखें बोल जाती
हैं।
तभी कहते सभी आँखें हैं मानों दिल का आइना-
हँसे रोए छिपा मत 'रेखा' आँखें बोल जाती हैं।।

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5 JUL 2021 AT 18:09

कहना वही जो मन में हो,
तोल-मोल कर ही मुख खोल।
सुनना ज्यादा बोलना कम,
जीवन एक कला अनमोल।।
मन में कुछ मुख पर कुछ होगा,
मुखड़ा खोल ही देगा पोल।
कर्म करें पूरा जो सोचा,
करना ज़रा न टालमटोल।।

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26 MAY 2021 AT 18:01

तोड़ दी जब मूर्ति उनकी बुद्ध फिर भी शांत थे
क्षमा दया प्रतिमूर्ति किंचित नहीं वे अशांत थे।
जब थक गया इंसान तो बोले वे उठ चल,
रे मानव!! क्या बनाएगा अब इस पाषाण से
घर बनाएगा? रहूंगा घर में तेरे
मूर्ति तू  है तोड़ता गढ़ता नहीं है
मस्जिद बनाई, तो रहूंगा उसमें मैं
कुछ भी सही पर हूॅं सदा तेरा कृतज्ञ
तू ही है जो देखता इसमें मुझे
तभी तो तोड़े मुझे।
कितने ही हैं जो संजोते हैं मुझे
पर कहां है देखते उसमें मुझे ।
मैं तो पाहन मूर्ति था बस
मैं तो पाहन मूर्ति था तूने किया "साक्षात" है।
मैं तो पाहन मूर्ति था तूने किया साक्षात है।।

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26 MAY 2021 AT 16:48

जीवन की आपाधापी में, कितने काम अधूरे रह गए।
ठहरा जीवन सोचा गिन लूं, कितने हैं जो सपने रह गए।
सपने तो सारे ही रह गए, जीना जैसे भूल गए हम-कर्तव्यों के अग्निपथ पर, संभल संभल बस चलते रह गए।

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17 MAY 2021 AT 19:36



देख दर्पण ज़रा मुखड़े को।
भूल जा अब ज़रा दुखड़े को।
देख ले अब ख़ुदा ख़ुद में ही।
एक ही मुसकराहट से ही।
Rekha Girish

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12 APR 2021 AT 22:23

मुट्ठी में बंद रेत की तरह है ज़िंदगी।
पल-पल फिसलते जाती देखो है ज़िंदगी।
जितना करूं मैं इसको बांधने की कोशिश-
उतनी तेजी से निकलती जाती ज़िंदगी।

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