Rehan Mirza   (Rehan Mirza)
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Joined 4 January 2023


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Joined 4 January 2023
6 OCT AT 10:17

रात होती जा रही है नींद आनी चाहिए
पर हमें कल के लिए ताज़ा कहानी चाहिए

ये तो राह ए इश्क़ है इस जा पे कैसी राहतें
कौन रेगिस्तान में कहता है पानी चाहिए

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27 SEP AT 15:20

जान-ए-ग़ज़ल को अपनी ग़ज़ल से निकाल दूं
मुमताज़ को मैं ताज-महल से निकाल दूं ?

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6 SEP AT 20:54

दिलों पे उतरी आयत को, न तुम समझे न मैं समझा
मुहब्बत की हक़ीक़त को, न तुम समझे न मैं समझा

ग़लत-फ़हमी का बढ़ जाना, अना का बीच में आना
ज़माने की शरारत को, न तुम समझे न मैं समझा

तुम्हें जाना था और मुझको तुम्हें ख़ुश देखना था बस
मगर इस दिल की चाहत को, न तुम समझे न मैं समझा

किसी से इश्क़ करते थे, किसी के साथ रहते हैं
अजब दस्तूर-ए-क़ुदरत को, न तुम समझे न मैं समझा

कभी ना-क़दरी तुमने की, कभी ना-क़दरी मैंने की
उस इक रिश्ते की क़ीमत को, न तुम समझे न मैं समझा

हुए है इश्क़ की इन राहों में बर्बाद हम दोनों
मियाँ मजनूँ की 'इबरत को न तुम समझे न मैं समझा

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30 AUG AT 12:49

रो लेने से दिल कब हल्का होता है
दरिया तो हर हाल में दरिया होता है

हिज्र की शब में इतना गिर्या होता है
हर आशिक़ का अपना दरिया होता है

उसको उतनी इज़्ज़त मिलती है साहब
जिसके पास में जितना पैसा होता है

शुरू'-शुरू' में सब लेते हैं दिल से काम
रफ़्ता-रफ़्ता आदमी दुनिया होता है

बहुत बुरा होता है अच्छा होना भी
अच्छों का नुक़्सान ज़ियादा होता है

सब ग़म की किश्तें भरते मर जाते हैं
सबका ही ख़ुशियों का बीमा होता है

जितनी देर वो मुझसे बातें करती है
उतनी देर ही मेरा होना होता है

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21 AUG AT 14:36

बंद कमरा, हिज्र, ख़ामोशी, घुटन
ज़िंदगी में है बहुत सारी घुटन

जा रहा था वो किसी के साथ में
हमने खिड़की खोल के पाई घुटन

रोज़ लगता है मगर मरते नहीं
साँस लेने देती है अच्छी घुटन

ख़ुदकुशी फिर जीत लेगी हिज्र को
इक हवा गर जीत न पाई घुटन

आशिक़ों ने फिर बराए ज़िंदगी
पी उदासी और है खाई घुटन

मैं हवा में उड़ रहा था ख़्वाब में
आँख खुलते ही पलट आई घुटन

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19 AUG AT 12:26

था साथ उसके और मैं कितना उदास था
सूखा वही दरख़्त जो दरिया के पास था

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14 AUG AT 13:38

तुम्हारे होंठो से झड़ कर के सारे फूल खिलते हैं
ज़रा सा मुस्कराने से तुम्हारे फूल खिलते हैं

तुम्हारी आँखें ऐसी आंसुओं के बीच लगती हैं
के जैसे एक दरिया के किनारे फूल खिलते हैं

बहार आती है तेरे आने से दिल के गुलिस्ताँ में
पिया हो जाएं जब तेरे इशारे फूल खिलते हैं

मेरी ख़ुशबू में अपनी ख़ुशबू को इक बार ज़म कर दो
ज़रा फिर देखो कितने प्यारे प्यारे फूल खिलते हैं

हमारे वास्ते वो संग दिल भी अब धड़कता है
चलो सहराओं में भी अब हमारे फूल खिलते हैं

तुम्हारा नाम ले कर जब ख़ुदा का नाम लेता हूँ
तो रंग लाते हैं सारे इस्तिख़ारे फूल खिलते हैं

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4 AUG AT 13:53

मजनूँ ने जिसके वास्ते सेहरा में जान दी
हमसे वो काम इश्क़ ने कमरे में ले लिया

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20 JUL AT 12:24

जा रहा था वो किसी के साथ में
हमने खिड़की खोल के पाई घुटन

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3 JUL AT 17:37

कभी वो जाने के बारे में सोचता ही नहीं
जो आप का है उसे रोकना नहीं पड़ता

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