इक अजनबी पे हुआ हक़ जता के शर्मिंदा
जब उसने पूछ लिया आप कौन हैं मेरे ?-
हम तो बस दर्द को लफ़्ज़ों में पिरो देते हैं
~ रेहान मिर्ज़ा
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उस ख़ुश-सुख़न ने मुझको भरोसे में ले लिया
सय्याद को परिंदे ने पिंजरे में ले लिया
रोने लगा तो बाहों में भर के कराया चुप
बारिश हुई तो प्यार से छाते में ले लिया
मिट्टी में ग़र्क़ हो गया पानी का सब ग़ुरूर
सागर को इक फ़क़ीर ने कासे में ले लिया
मजनूँ ने जिसके वास्ते सहरा में जान दी
हमसे वो काम इश्क़ ने कमरे में ले लिया
बुझने लगा चराग़ मेरे ए'तिबार का
मुझ को किसी हवा ने भरोसे में ले लिया
"रेहान मिर्ज़ा" नाम है हमने कहा था ना
तुमने हमारी बात को हल्के में ले लिया-
मौत से भी लड़ना है और ज़िंदा रहना है
आप से बिछड़ना है और ज़िंदा रहना है
सच कहूँगा मैं गर तो मार डालेगी दुनिया
झूठी बातें गढ़ना है और ज़िंदा रहना है
देखो ये जहालत भी मौत का ही पहलू है
बच्चो तुमको पढ़ना है और ज़िंदा रहना है
ये लचीलापन ही तो रिश्तो को बचाता है
आपको अकड़ना है और ज़िंदा रहना है ?
बाग़-बाग़ फिरना है चंद रंगों की ख़ातिर
तितलियाँ पकड़ना है और ज़िंदा रहना है
दिल धड़कने की ख़ातिर अपनी बाहों में "मिर्ज़ा"
उनको बस जकड़ना है और ज़िंदा रहना है-
मुझसे बच-बच के चल रही हो ना ?
अपना रस्ता बदल रही हो ना ?
अब तो तुम बात भी नहीं करती
तुम तो मेरी ग़ज़ल रही हो ना !-
दिल में तो बहुत कुछ है जो कहना था मुझको पर
मसरूफ़ियत ने आप की ख़ामोश कर दिया-
दर्द-ए-पिंहाँ की सदा आप नहीं समझेंगे
क्या है इस दिल की दवा आप नहीं समझेंगे
"ख़ैर" कह कर जो मैंने बात अधूरी छोड़ी
इसका मतलब यही था आप नहीं समझेंगे
आप को इश्क़ किसी से है ये सुन कर मुझको
दिल में क्यूँ दर्द उठा आप नहीं समझेंगे
क्या असर मुझ पे हुआ आपके यूँ जाने से
पेड़ क्यूँ सूख गया आप नहीं समझेंगे
आप तो लफ़्ज़ भी मुश्किल से समझ पाते हैं
ये ख़मोशी की सदा आप नहीं समझेंगे
बार-हा आपको समझाया मगर जाने-जाँ
मुझको एहसास हुआ आप नहीं समझेंगे-
चाँदनी होती नहीं दिल में कई दिन तक अब
आज-कल रहता है मसरूफ़ बहुत चाँद मेरा-
मैं सोचता था मुश्किलें आसान करेगा
वो मेरे हर एक दर्द का दरमान करेगा
अपनी ही परेशानियों में उलझा हुआ शख़्स
क्या ख़ाक मेरे दिल की तरफ़ ध्यान करेगा-