जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है
ज़ुबाँ मिली है मगर हमज़ुबाँ नहीं मिलता
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिसमे धुआँ नहीं मिलता
तेरे जहाँ में ऐसा नहीं कि प्यार न हो
जहाँ उम्मीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन तो कहीं आसमान नहीं मिलता-
शमा को पिघलने का अरमान क्यूँ है
पतंगे को जलने का अरमान क्यूँ है
इसी शौक का इम्तिहां ज़िन्दगी है
मोहब्बत जिसे बख्श दे ज़िन्दगानी
नहीं मौत पर ख़त्म उसकी कहानी
कैसे जिया जाए इश्क़ बिन
नहीं कोई इंसान मोहब्बत से खाली
हर इक रूह प्यासी हर इक दिल सवानी
मोहब्बत जहाँ है वहाँ ज़िन्दगी है
मोहब्बत ना हो तो कहाँ ज़िन्दगी है-
पेड़ों की शाखों पे सोई सोई चाँदनी
तेरे खयालों में खोई खोई चाँदनी
और थोड़ी देर में थक के लौट जाएगी
रात ये बहार की फिर कभी न आएगी
दो एक पल और है ये समा
लहरों के होंठों पे धीमा धीमा राग है
भीगी हवाओं में ठंडी ठंडी आग है
इस हसीन आग में तू भी जलके देखले
ज़िंदगी के गीत की धुन बदल के देखले
खुलने दे अब धड़कनों की ज़ुबाँ
ये रात ये चाँदनी फिर कहाँ
सुन जा दिल की दास्ताँ-
न जाने देख के क्यों उनको ये हुआ एहसास
कि मेरे दिल पे उन्हें इख्तियार आज भी है
वो प्यार जिस के लिये हमने छोड़ दी दुनिया
वफ़ा की राह पे घायल वो प्यार आज भी है
यकीं नहीं है मगर आज भी ये लगता है
मेरी तलाश में शायद बहार आज भी है
न पूछ कितने मोहब्बत के ज़ख़्म खाये हैं
कि जिन को सोच के दिल सोग़वार आज भी है
वो वादियाँ वो फ़ज़ायें कि हम मिले थे जहाँ
मेरी वफ़ा का वहीं पर मज़ार आज भी है
किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है
कहाँ हो तुम कि ये दिल बेक़रार आज भी है-
झुकी हुई निगाह में, कहीं मेरा ख़याल था
दबी दबी हँसीं में इक, हसीन सा सवाल था
मैं सोचता था, मेरा नाम गुनगुना रही है वो
न जाने क्यूँ लगा मुझे, के मुस्कुरा रही है वो
मेरा ख़याल हैं अभी, झुकी हुई निगाह में
खुली हुई हँसी भी है, दबी हुई सी चाह में
मैं जानता हूँ, मेरा नाम गुनगुना रही है वो
यही ख़याल है मुझे, के साथ आ रही है वो
वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है
वो कल भी पास पास थी, वो आज भी करीब है-
भुलाये किस तरह उनको, कभी पी थी उन आँखों से
छलक जाते हैं जब आँसू, वो सागर याद आते हैं
किसी के सुर्ख लब थे या दिये की लौ मचलती थी
जहाँ की थी कभी पूजा, वो मंदर याद आते हैं
रहे ऐ शम्मा तू रोशन दुआँ देता है परवाना
जिन्हे किस्मत में जलना हैं, वो जलकर याद आते हैं
जिन्हे हम भूलना चाहे, वो अक्सर याद आते हैं
बुरा हो इस मोहब्बत का, वो क्यों कर याद आते हैं
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जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर
आँखों पे खींचकर तेरे आँचल के साए को
औंधे पड़े रहे कभी करवट लिये हुए
दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन
या गरमियों की रात जो पुरवाईयाँ चलें
ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागें देर तक तारों को
देखते रहें छत पर पड़े हुए
दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन
बर्फ़ीली सर्दियों में किसी भी पहाड़ पर
वादी में गूँजती हुई खामोशियाँ सुनें आँखों में
भीगे भीगे से लम्हे लिये हुए
दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन...-
जबीं सजदा करते ही करते गए
हक़-ए-बंदगी यूँ अदा कर चले
परस्तिश किया तक कि ऐ बुत तुझे
नज़र में सभों की ख़ुदा कर चले
बहुत आरज़ू थी गली की तेरी
सो यास-ए-लहू में नहा कर चले
दिखाई दिए यूँ कि बेखुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले-
हम लबों से कह ना पाए
उनसे हाल-ए-दिल कभी
और वो समझे नहीं
ये ख़ामोशी क्या चीज़ है-
સાથે રમતા સાથે ભમતાં સાથે નાવલડીમાં તરતાં
એક દરિયાનું મોજુ આવ્યું
વાર ન લાગી આવી તુજને સરતાં
આજ લગી તારી વાટ જોવુ છું
તારો કોઈ સંદેશો ના આવે
તારા વિના ઓ જીવનસાથી જીવન સૂનું સૂનું ભાસે
પાંખો પામી ઊડી ગયો તું,
જઈ બેઠો તું ઊંચે આકાશે
કેમ કરી હું આવુ તારી પાસે
મને કોઈ ના માર્ગ બતાવે
ઓ નીલ ગગનનાં પંખેરું તુ કાં નવ પાછો આવે
મને તારી ઓ મને તારી યાદ સતાવે-