उम्मीदें..........
रंग बदलती है कभी कभी इतना की स्याह
छोड़ जाती है.... और वो स्याह इतना लाल
होता है कि पहले आँखों पर आ जाता है फिर
आँखों के किनारों पर ।
क्या? ?
उम्मीदें काटती भी है वो भी दरांती की तरह
और इतना काटती है कि लहु केशों पर
दिखती है सादा रंगों में
उफ्फ ....
अजीब आफत है फिर तुमने पाला ही क्यों ?
अब इसका जवाब मैं क्या ही देती
कल मिलती हूँ ये वायदा कर बैग उठाया
और चल दिया एक नई उमीद की ओर
एक नई उम्मीद के साथ ।-
नमक सी हूँ मित्र
जीभ को लगूँ तो स्वाद आ जाए और
जख्म को लगूँ तो औकात आ जाए ।-
कहते हैं भावनाएं आहत होती हैं
भावनाएं टूटती हैं, बिखरती है इतना कि
वे इंतजार नही करती
वो फफक पड़ती हैं
पर मैंने देखा है . . . .
भावनाओं का रंग नीला होता है
अक्सर जब कागज़ पर उकेर दिए जाए तब
मैंने देखा है भावनाएं रंगहीन होती है
अक्सर जब आँखों से निकल जाए तब
मैंने देखा है भावनाओं को बहना आता है
अक्सर जब उसे कद्रदान मिल जाए तब
मैंने देखा है भावनाएं हंसती है
अक्सर जब उसे सहजने को कोई पास हो तब
मैंने देखा है भावनाएं रोती भी है
अक्सर जब उसके साथ कोई खेल जाए तब
मैंने देखा है भावनाऐं स्तब्ध रह जाती है
अक्सर जब उसे कोई मौन करा जाए तब
हाँ मैंने भावनाओं को सिसकी भरते देखा है
रीतु प्रकाश
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लो सुन लो अब आप कहते हो दुःख भला है ही किसे ? ?
जो रिश्तों में हैं उन्हे रिश्तों में रहने का दुःख और
जो रिश्तों में नहीं है उन्हे रिश्तों में ना हो पाने का दुःख
जो खुबसूरत है उसे उसके इनाम ना पाने का दुःख
जो खुबसूरत नहीं है उन्हे अपने बदसूरत होने का दुःख
जो लोकप्रिय है उन्हे एकांत में ना जी पाने का दुःख तो
जो एकांत में हैं उन्हे लोकप्रियता की चाह का दुःख
जो नौकरी में हैं उन्हे व्यस्तता का दुःख तथा
जो नौकरी में नहीं है उन्हे दूसरों की नौकरी होते
देखने का दुःख
रहने दो जो है मेरे पास । मुझे है तो बस
किसी और के पास मेरे जितना होने का दुःख
अब थक चुकी हूं भौंहें टेढ़ी कर या झूठी मुस्कुरा कर
उफ्फ वो खुश है इस बात का है बस दुःख
रीतु प्रकाश......
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उम्र से पहले समझदार होना मजबूरी
आवश्यकता ना पड़ने पर समझदार बनना बेवकूफी
और आपकी मजबूरी में आपको समझदार बनाना शोषण
कहलाता है ।-
सबसे बड़ी बेवकूफी है खुद की इच्छाओं को हवा देना ये कभी कभी आपको पिशाच भी बना देता है ।
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The biggest distance is mental
distance which is probably
impossible to cover.
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उधार की मेंहदी
कभी तो खत्म होगी ये कहानी
ये दृश्य, ये प्रतिशोध, ये आग मगर
तुम सही थे, अकारण से ही जन्मा इस
कारण के पीछे काश कभी कोई कारण रहता।
अब रंग नहीं चढ़ने का ये मतलब कतई नहीं
होता है कि कोई मिलावट ही रही होगी चाहे वह
सामग्री में कहो या चाहत में ।
तुमसे कहने को कुछ बचा तो नहीं है
चाहे शिकायत ही कह लो ।
उफ्फ क्या आफत है काश तुमसे मुलाकात हुई
होती तो शायद तुम्हे कह पाती शायद तुम्हारे
सुंदरता में कोई मिलावट नहीं है परंतु तुम्हारे
तबियत में ठीक उस वस्तु की तरह ही मिलावट
है जो रंग ना ला पाई ।-