गुज़रते जा रहे हैं जो मौसम जिंदगी के,
कैसे वापस उन्हें लाओगे।-
बेपरवाह हो के दिल को आज सुनने की कोशिश में हूँ।
जाने इतना अंजान कैसे बना जाता है कि सिर्फ कर्त्तव्य नज़र आएं और उम्मीदें नज़रंदाज़ हो जाएं।
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हर वेदना को, हर भाव को, जो समझ ले हृदय के आभाव को।
है उसी में संपूर्णता,बस वही प्रेम का आधार है।-
कैसे किया होगा वो दिखावा हमको चाहने का,
जो आज नफ़रत के सिवा कोई रिश्ता नहीं रखते।-
खफा हर सख्श ऐसे है,
कि कोई जागीर रख ली हो,
है शिकवे हज़ार ऐसे,
कि हमने ही दुनिया छीन ली हो।-
है बाकी बहुत कुछ एक बार सोच लो
वो पुरानी डायरी एक बार देख लो,
एक अजनबी से तुम्हारा खास बन जाना,
"जान" बनने तक का सफर एक बार देख लो,
Classes से डेट पे जाना, फिर गिफ्ट में rose का लाना,
वो सिलसिला हमारी शरारतों का एक बार देख लो।
बिन मौसम बरसात की में भी भीग जाना,
फिर चाय की चुस्की एक साथ लगाना।
कितनी हसीन थी वो शाम कि दिल आज भी जी उठता है,
पुरानी यादों के किस्से एक बार फिर से सुन लो।-
दर्द के कई मंज़र इन आँखों ने देख लिए,
अपने ही दिल के टुकड़े हज़ार कर दिए,
मगर जब संभालना चाहा तो इल्ज़ाम ही मिला,
वो ऐसा ही था ये सबने तय कर दिया।-
घर अब घर नहीं रहा।
यादें सहेजने का एक कोना हो गया है
तुम्हारे जाने के बाद कुछ ख़ास नहीं बचा है,
मेरे पास तुम्हारा न होना ही रह गया है।
वो खुशबू जो हर कोने में बसती थी,
तुम्हारा जाना वो रूमानियत भी ले गया है,
महज़ बेबसी ही रह गयी है अब हाथ में,
जो मेरा था कभी,किसी और का हो गया है।-