Reema K Arora   (रीमा_अरोरा)
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Joined 29 October 2020


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YESTERDAY AT 19:56

सांसों में किमाम सा महकता है इश्क़
जिस्म में लहू सा दहकता है इश्क़
दुनिया भुला, कर के रख दे बावरा, इश्क़
नज़रों में बना दे खुदा, एक सांवरा, इश्क़

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YESTERDAY AT 9:23

रिश्तों की दुहाई, देते यहां सब
अपने गिरेबान, झांके कौन कब
ख़ुद को हर हाल सही जो मान बैठे हैं
सामांतर रेखाएं जैसे चलोगे जब

कौन मोड़ेगा मन की अकड़ को
दूर करेगा दंभ की ज़हरीली जकड़ को
मांगने की ललक हर मन में हैं गहरी
देते समय, हिचक हथेलियों पर ठहरी

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YESTERDAY AT 9:14

विगत को भी भुलाना पड़ता है
तोड़नी पड़ती हैं ज़ंजीरें ख़ुद ही पॉंवों की
खु़शियों को हंसकर रिझाना पड़ता है

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14 JUL AT 14:31

हमनें बदला सोचने-समझने का नज़रिया
जोश में चल पड़े थे जिसपर झूमकर
जाना कि गार भरी है वो नयी पायी डगरिया
ईश्वर ने भेजा संबल बना, एक खैरख्वाह
दिखाया जिसने, कैसे हो सकता था सबकुछ स्वाह
समय रहते जान ली हमनें, चाल ख़राब वक्त की
कृपा से बच गए हम, माना परिस्थिति सख्त थी

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14 JUL AT 0:10

merge, slide and collide
Making their way to the gravity
Falling apart,
but forming one,
they abide

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13 JUL AT 23:58

रही होगी कोई तो, कभी, आंख तरसती यहां पर
यूं ही नहीं दरवाजे ज़रा सी हवा के जोर खुल जाते हैं

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13 JUL AT 1:05

जाने क्यों, वो एक भूला साया
था कभी जो साथी, बचपन के सावन का
काग़ज़ की नावों का, समय मनभावन का

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12 JUL AT 10:08

किसी-किसी बिखराव में एक अलग ही सुंदरता है
जैसे समंदर का, और आसमान का, यादों का

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11 JUL AT 13:41

अब जाना मैंने, कांच की चूड़ियां तेरी धड़कनों को खनकाती हैं
हाथ मेरा थाम हाथों में, जो साजन पहनाए, वही मन को भाती हैं

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11 JUL AT 12:51

ख़ुद
को रिश्तों
में झोंक कर
क्या ही पा लिया मैंने
ख़ुद को तो गंवा ही दिया
किसी से उम्मीद रखने का तक
अधिकार नहीं मिल पाया, अंत तक
झोली भरने की कोशिश में, लगता है अब
हाथ की हथेलियां तक ख़ाली रह गई हैं, अन्ततः

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