पहला हर्फ़ अपनी माँ से सिखा,मेरी पहली उस्ताद भी माँ,
मैंने नन्हें कदमों ने चलना सिखा,मेरे कदमों की कुवत भी माँ,
मेरे लड़खड़ाते ज़बान ने बोलना सिखा,मेरा पहला अक्षर भी माँ,
बिना छल के प्रेम लुटाती,मुझे मोहब्बत सिखलाने वाली भी माँ,
ख़ुद से ज़्यादा दूसरों के लिये जिना,जन्म दे कर ये बतलाने वाली भी माँ,
मेरी ग़लती को छुपा कर सबसे,मुझे एकांत में समझाने वाली भी माँ,
ख़ुद के तपते बदन को छोड़,मेरे एक छींक से परेशां होने वाली भी माँ,
अपनी ख़ुशियों को छोड़,हम पर अपनी ज़िदगी लुटाने वाली भी माँ,
माँ का होना मुक़द्दर है,और इसका एहसास ख़ुद करवाने वाली भी माँ।
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