رضیہ پروین   (Raziya parveen 🍁)
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Alhamdulillah
Joined 29 May 2019


Alhamdulillah
Joined 29 May 2019
3 JAN 2022 AT 18:42

You are never too old to set another goal or to dream a new dream.”
— Malala Yousafzai

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29 JUN 2021 AT 16:31

"चंद मिसरे बा-मुख़ातिब-ए-जाँ"

एक दिन की जुस्तजू है बताऊँ मैं किस क़दर,
दिन माह ए जनवरी का और थी वो दोपहर,
एक मेहर-ओ-माह-ए-ताब पे आकर गया ठहर,
रोशन है जिस हसीन से मेरे दिल का ये शहर,
उसने लबों से छू कर उस रोज़ मेरे लब,
दिखला दिया के हैं वो लब मय-ए-शकर,
ढाया जो क़यामत का यकायक कोई क़हर,
है क़न्द से भी मीठा उस इश्क़ का ज़हर,
उसकी दिल-ओ-निगाह का मुझपे है यूँ असर,
के ख़ात्मा-फ़िल-वक्त है ग़म कि हर एक सहर
के ख़ात्मा-फ़िल-वक्त है ग़म कि हर एक सहर।

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14 JUN 2021 AT 12:16

सोचा था तेरा साथ ता-उम्र का होगा,
यू बिच में चले जाना जरूरी था क्या।

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12 JUN 2021 AT 11:14

खुबसूरत इंसान से मोहब्बत होने में और
मोहब्बत के खुबसूरत होने में फर्क़ है।

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17 MAY 2021 AT 18:11

मिजाज-ओ-रंग कद-ओ-खानदान का हाल पूछते है,
ये लड़के वाले भी ना जाने कितने सवाल पूछते है।

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9 MAY 2021 AT 3:25

पहला हर्फ़ अपनी माँ से सिखा,मेरी पहली उस्ताद भी माँ,
मैंने नन्हें कदमों ने चलना सिखा,मेरे कदमों की कुवत भी माँ,

मेरे लड़खड़ाते ज़बान ने बोलना सिखा,मेरा पहला अक्षर भी माँ,
बिना छल के प्रेम लुटाती,मुझे मोहब्बत सिखलाने वाली भी माँ,

ख़ुद से ज़्यादा दूसरों के लिये जिना,जन्म दे कर ये बतलाने वाली भी माँ,
मेरी ग़लती को छुपा कर सबसे,मुझे एकांत में समझाने वाली भी माँ,

ख़ुद के तपते बदन को छोड़,मेरे एक छींक से परेशां होने वाली भी माँ,
अपनी ख़ुशियों को छोड़,हम पर अपनी ज़िदगी लुटाने वाली भी माँ,

माँ का होना मुक़द्दर है,और इसका एहसास ख़ुद करवाने वाली भी माँ।



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6 MAY 2021 AT 20:13

माँ मैं कितना और क्या क्या कर जाऊ,
माँ बता ना मैं तुझको कैसे वापस लाऊ।

माँ बगैर खिलौने के तो मैं रह जाता था,
माँ बगैर तेरे बाहों के मैं नींद कहा से लाऊ।


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1 MAY 2021 AT 12:13

ज़िन्दगी बसर करने के अलावा कुछ कर नही सकते,
जिना तो जिना खुद अपनी मौत मर नही सकते,

बहुत मुश्किलो से दाल-रोटी ला पाते है घर मे,
इससे ज्यादा तो और बच्चों के लिये और कुछ कर नही सकते।

हमने भी ख़्वाब संजोये हमारे बच्चे भी पढ़ लिख जाये,
अफसोस कि चन्द सिक्को से अपने इस ख़्वाब को पूरा कर नही सकते।

पूरे दिन की मेहनत के बाद जो मज़दूरी घर लाये है ,
उन पैसो से तो जानकी देवी की बिमारी से भी लड़ नही सकते।

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29 APR 2021 AT 3:33

जो दिखती नही सत्ते की कुर्सी से जाने क्यों सिर्फ हमे ही दिखायी देती है,
आवाज़ नही जाती क्या उनके कानों तक या चिंखे सिर्फ हमे सुनायी देती है ।

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29 APR 2021 AT 2:52

Ham phir usi jagah par milenge,
Jha log aksar bichad jaya karte hai .

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