पता है हमको सब, पर तुमको आते सिर्फ़ उलाहने हैं ख़ामोशी से आँखों -आँखों मारे कितने ताने हैं देरी दूरी दो ही शिकवों पर अटके रह जाते हो एक ज़िंदगी, सौ सौ उलझन, कितने फ़र्ज़ निभाने हैं -------रचना
बहुत दिनों से कुछ कहा ही नहीं,ऐसा नहीं कहने सुनने को कुछ रहा ही नहीं, ऐसा नहीं मुस्कराते हुए मिलेंगे, देख लेना कभी ग़म मिला ही नहीं ,सहा ही नहीं, ऐसा नहीं --रचना