मेरी आँखो की चमक अब तुम्हें फीकी ही लगेगी इस हुस्न की झलक भी तुम्हे कहीं ना मिलेगी तुम्हारे मन को बहका देने वाली खुबसूरती अब तो केवल इन लफ़्ज़ों में ही आहें भरेगी नूर ना पता पर बन गया है ये चेहरा ध्रुव का तारा जिसे देखकर पाने की तमन्ना तुम्हारे दिल में हर बार उठेगी
सात फेरों की ये रस्में तोड़ देती है एक स्त्री को छीन लेती है आजादी उस से उसी के अस्तित्व की | खोखला कर देती है भीतर से और बहुत थका भी देती है सात फेरों की यही रस्में |