मनाही,आलोचना,तर्क-वितर्क,नापसंदी,
या यूं कहें सिर्फ़ इक कोरी सी ना...
हर स्त्री तो आज भी नहीं कर पाती
साफ़ सीधे लहज़े में इसका प्रयोग
तो जो कुछ एक करतीं हैं...
उनमें पुरुषत्व भाव की उपस्थिति
नई तो नहीं होती होगी,
शायद, वो जो छोटा शरारती बच्चा
बस्ता है हर इक शख्स में
वो सहसा परिपक्व हो जाता होगा उनमें।
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