कोशिश करो
संवेदनाएं सुलगाओ
ज़मीर जगाओ तो सही
जिन्हें अंधभक्ति की प्रकाष्ठा तक ले आये थे
इस विपदा में उन बेचारों के ही काम आओ तो सही
हां...!!! दवाऐं,ईलाज बड़ा मंहगा दूभर है
मरणोपरांत चिता की अग्नि सुलभ कराओ तो सही
ज़िंदा ही लाशों जैसे हुए हैं हालात
मुर्दा पर गन्दी राजनीति चमकाओ तो नहीं।-
वो मर चुका है
"हिटलर" जो कहा करता था..
"जनता को इतना निचोड़ लो,
के वो ज़िंदा रहने को ही विकास समझे"
पर नहीं...
विचर रही है उसकी आत्मा
आज भी सियासती गलियारों में
आम जन मर रहा,
वो और उसके प्रिय नेता
मशगूल हैं
चुनावी मुशायरों में...
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शहीद हुए वतन के लिए
आम नहीं आप ख़ास हैं
मैं वारी जाऊं महान पुरखों के
सांसों के साथ विरला एहसास है।
बंद करे सियासत ज़हर फैलाना
उनके वारिसों पर ऊंगली उठाना
होश में नहीं ये सियासती ज़ालिम
नाशुक्रा है... बदहवास है...।-
मैं आपदे अंदरीं कई वार तेनू भाल्दी हां
होरां लई होवेंगां तूं "भगत" सिंहां
ऐ "शहीद ए आजमां"
मैं इबादत करदी हां तेरी
तेनू ख़ुदा जाणदी हां।-
जो इंसान दुनिया लई अरदास करदा ऐ
उसनूं अपणे लई अरदास करण दी लोड़ नईं पैंदी।
A person who prays for others
Does not need to pray for himself.
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आज जिंदा वो हैं, जिनके ज़मीर सच की गवाही दें
और मर चुके हैं वो,जिन्हें हकूक की आवाज़ें ना सुनाई दें-
मुख्तलिफ़ हैं अदाएं
उनके आगे हर रंग सादा है
क्या बताएं नूर ए इंतहा की बाबत
बस यूं जानिए,
वो इक मुकम्मल सी मुलाक़ात...
और अब तक देखा,
हर चौदहवीं का चांद आधा है...-
सो क्यूं मंदा आखिए
जित जन्मे राजान।
Why call her bad?
From her kings are born.
(-SGGS, ANG : ४७३)
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मनाही,आलोचना,तर्क-वितर्क,नापसंदी,
या यूं कहें सिर्फ़ इक कोरी सी ना...
हर स्त्री तो आज भी नहीं कर पाती
साफ़ सीधे लहज़े में इसका प्रयोग
तो जो कुछ एक करतीं हैं...
उनमें पुरुषत्व भाव की उपस्थिति
नई तो नहीं होती होगी,
शायद, वो जो छोटा शरारती बच्चा
बस्ता है हर इक शख्स में
वो सहसा परिपक्व हो जाता होगा उनमें।-