अश्कों में हुँ तेरे, मैं तेरे कहकहों में हुँ,
इश्क़ हुआ जबसे मुझे मुश्किलों में हुँ,
दिद ए नश्तर चले भी तो हम ही पर,
जुर्म आपका और में क़ातीलों में हुँ,
काली घनी ज़ुल्फों में जो घिरता जाऊँ,
महसूस हुआ मुझे के में बादलों में हुँ,
हर रोज़ देख मुझे मुस्कुराना आपका,
लगता है मुझे में आपकी आदतों में हुँ,
बेचैनी देख कर आपकी डर जाते हैं हम
शिद्दत से उनकी रातों की करवटों में हुँ,
हैं #रज़ा तुम्हें भी तजुर्बा मोहब्बत का,
इसी लिए आजतक अपने दायरों में हुँ।-
क़ागज़ पर मेरा क़लम चलता है।
●रज़ा ख़ान रज़ा
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मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना,
लहू से मेरी पेशानी पर हिंदोस्तान लिख देना।
(राहत इंदौरी)
यह जो शख़्स कल चला गया हमारी दुनिया से,
इस ज़मीं का नहीं था उसे आसमान लिख देना।-
#riprahatindori
मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना,
लहू से मेरी पेशानी पर हिंदोस्तान लिख देना।
(राहत इंदौरी)
यह जो शख़्स कल चला गया हमारी दुनिया से,
इस ज़मीं का नहीं था उसे आसमान लिख देना।
लफ्ज़ों को जीत लेता था क़लम के हुनर से,
तारीख़ में उसे शायरों का फतेहान लिख देना।
उसे सुने बिना राहत अब केसे मिलेगी हमको,
दो गज़ के ज़मींदार को पुरा जहान लिख देना।-
बुढ़ा हो गया हुँ बच्चों को खटकने लगा हुँ,
उनके घरों के एक कोने में सिमटने लगा हुँ,
तल्ख़ आवाज़ों से पूछते हैं क्या चाहिए बोलो,
ख़्वाहिशों को बताने में झिझकने लगा हुँ,
बाहरी कमरा,चार पाई, खाने की अलग प्लेट,
जायदाद इसे ही अपनी समझने लगा हुँ,
जवानी की ने'अमत से बुढापे की हक़ीक़त तक,
दिल ही दिल में अब सिसकने लगा हुँ,
मुस्तक़ील ठिकाना रहा ही नहीं मेरा #रज़ा,
इसके घर से उसके घर तक भटकने लगा हुँ।-
मैदान ए जंग कोई ख़्वाहिश तो करो,
#जीत आसान है कोशिश तो करो,
दुनिया में बहुत मोहब्बत है आज भी,
प्यार से थोड़ी बहुत गुज़ारिश तो करो,
मौत से भी जंग जीती जा सकती है,
ज़िंदगी पाने की कोई साज़िश तो करो,
दर्द पर मरहम भी वो लगा देगा 'रज़ा,
ज़खमों की थोड़ी बहुत नुमाईश तो करो,-
तु हक़ीक़त ना सही इसपर कुछ बात हो जाए,
तुझे ख़्वाबों मे देखूंगा, जल्दी से रात हो जाए,-
हैं वख़्त बड़ा नाज़ूक तो मोहब्बत से काम लो,
जो तुझे अपना समझे उसी का हाथ थाम लो,
तु ग़ैरों में अपनों को तलाशता रहा क्यूँ मगर,
दुश्मन जब अपने हो क्यूँ किसी का नाम लो,
ग़िबतो ने मेरे बहुत सारे गुनाह कम करवा दिए,
में कहता हूँ नाम मेरा दिन रात सुबह शाम लो,-
जो रास्ते तुझ तक आ रहे थे मोड़ चुके हम,
तेरी जुदाई में तन्हाई का कम्बल ओड़ चुके हम।-
*गज़ल*
करलो सफें दुरूस्त अब बड़ा सैलाब आएगा,
हिंदुस्तान में एक और नया इंक़लाब आएगा,
तुम मुझे खुद से जितना चाहे दूर कर लो,
रोज़ रातो को तुम्हें मेरा ही ख़्वाब आएगा,
जिसनें भी कभी दिखाई मेरे मुल्क़ को आखें
जो हम अपनी पर आएंगे तो जुलाब आएगा,
हर जगह ज़ुल्म,क़त्ल,अज़मते लूटी जा रहीं,
ये तो कुछ भी नहीं और वक़्त ख़राब आएगा,
हमनें ख़त में मोहब्बत की एक कली भेजी थी,
उम्मीद है हमें कभी तो ख़त में गुलाब आएगा,
कितनी भी ग़द्दारी कर लो वतन के रहनुमाओं,
सामने अवाम के एक दिन पूरा हिसाब आएगा,
कई दफ़ा मेरे सलाम को क़ुबूल ही नहीं किया,
अब पहले उन्हीं की तरफ से आदाब आएगा,
समझ जाओ ज़ालिमों की साज़िशों को अब भी,
समझाने न कोई अब आसमानी किताब आएगा,
मेरे यादों का समंदर भी हैरान रह गया जानकर,
जब भी तुझे मिलने आएगा बड़ा बेताब आएगा,
ज़ुल्म की जब भी इंतेहा हुई ज़माने में #रज़ा,
अल्लाह की तरफ कोई बड़ा आज़ाब आएगा।-
लो ख़त्म हो गया आज ये मोहब्बत का हफ्ता
हफ्ते में रह गया क्या हो गया इश्क़ सस्ता
ना जाने क्यो ना मिली इश्क़ की मंज़िल मुझे
तलाश में इसके निकलते ही खो गया रस्ता
वो बचपन अभी से ज़िन्दगी का बोझ उठा रहा
इंतज़ार कर रहा जिसका कोई स्कूल का बस्ता
क्या अश्क़ ही यहाँ दर्द का मरहम बना #रज़ा
हैं ऐसे भी यहाँ जो हँसा कर नही हँसता
-●रज़ा ख़ान रज़ा-