Raza Lala Khan   (●रज़ा ख़ान रज़ा)
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Joined 11 February 2017


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28 MAY 2021 AT 18:58

अश्कों में हुँ तेरे, मैं तेरे कहकहों में हुँ,
इश्क़ हुआ जबसे मुझे मुश्किलों में हुँ,

दिद ए नश्तर चले भी तो हम ही पर,
जुर्म आपका और में क़ातीलों में हुँ,

काली घनी ज़ुल्फों में जो घिरता जाऊँ,
महसूस हुआ मुझे के  में  बादलों  में हुँ,

हर रोज़  देख मुझे  मुस्कुराना आपका,
लगता है मुझे में आपकी आदतों में हुँ,

बेचैनी देख कर आपकी डर जाते हैं हम
शिद्दत से उनकी रातों की करवटों में हुँ,

हैं #रज़ा तुम्हें भी तजुर्बा मोहब्बत का,
इसी लिए आजतक अपने दायरों में हुँ।

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12 AUG 2020 AT 13:45

मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना,
लहू से मेरी पेशानी पर हिंदोस्तान लिख देना।
(राहत इंदौरी)
यह जो शख़्स कल चला गया हमारी दुनिया से,
इस ज़मीं का नहीं था उसे आसमान लिख देना।

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12 AUG 2020 AT 13:41

#riprahatindori

मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना,
लहू से मेरी पेशानी पर हिंदोस्तान लिख देना।
(राहत इंदौरी)
यह जो शख़्स कल चला गया हमारी दुनिया से,
इस ज़मीं का नहीं था उसे आसमान लिख देना।

लफ्ज़ों को जीत लेता था क़लम के हुनर से,
तारीख़ में उसे शायरों का फतेहान लिख देना।

उसे सुने बिना राहत अब केसे मिलेगी हमको,
दो गज़ के ज़मींदार को पुरा जहान लिख देना।

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20 MAY 2020 AT 9:25

बुढ़ा हो गया हुँ बच्चों को खटकने लगा हुँ,
उनके घरों के एक कोने में सिमटने लगा हुँ,

तल्ख़ आवाज़ों से पूछते हैं क्या चाहिए बोलो,
ख़्वाहिशों को बताने में झिझकने लगा हुँ,

बाहरी कमरा,चार पाई, खाने की अलग प्लेट,
जायदाद इसे ही अपनी समझने लगा हुँ,

जवानी की ने'अमत से बुढापे की हक़ीक़त तक,
दिल ही दिल में अब सिसकने लगा हुँ,

मुस्तक़ील ठिकाना रहा ही नहीं मेरा #रज़ा,
इसके घर से उसके घर तक भटकने लगा हुँ।

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19 MAY 2020 AT 17:54

मैदान ए जंग कोई ख़्वाहिश तो करो,
#जीत आसान  है कोशिश तो करो,

दुनिया में बहुत मोहब्बत है आज भी,
प्यार से थोड़ी बहुत गुज़ारिश तो करो,

मौत से भी जंग जीती  जा सकती है,
ज़िंदगी पाने की कोई साज़िश तो करो,

दर्द पर मरहम भी वो लगा देगा 'रज़ा,
ज़खमों की थोड़ी बहुत नुमाईश तो करो,

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5 FEB 2020 AT 15:31

तु हक़ीक़त ना सही इसपर कुछ बात हो जाए,
तुझे ख़्वाबों मे देखूंगा, जल्दी से रात हो जाए,

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4 FEB 2020 AT 22:35

हैं वख़्त बड़ा नाज़ूक तो मोहब्बत से काम लो,
जो तुझे अपना समझे उसी का हाथ थाम लो,

तु ग़ैरों में अपनों को तलाशता रहा क्यूँ मगर,
दुश्मन जब अपने हो क्यूँ किसी का नाम लो,

ग़िबतो ने मेरे बहुत सारे गुनाह कम करवा दिए,
में कहता हूँ नाम मेरा दिन रात सुबह शाम लो,

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12 SEP 2019 AT 12:20

जो रास्ते तुझ तक आ रहे थे मोड़ चुके हम,
तेरी जुदाई में तन्हाई का कम्बल ओड़ चुके हम।

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12 SEP 2019 AT 11:31

हम तुम्हें पाकर खोना नहीं चाहते,
तुम्हारी जुदाई में रोना नहीं चाहते,

तुम सदा हमारे ही रहना बनकर,
हम खुद किसी होना नहीं चाहते।

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4 SEP 2019 AT 15:18

मुझे दूर करने की तु सारी कोशिशें कर गई,
तुझे पाने की मेरी ही सारी ख़्वाहिशें मर गई,

मोहब्बत जिस्म से करने वाले क्या समझेंगे,
वो पाक मासूम रूह थी छूते ही डर गई,

बड़ा अजीब रिश्ता रहा मेरा अपनो के साथ,
भला बुरा कहते मुझे आखें माँ की भर गई,

ख़त्म ही हो गया सिलसिला मोहब्बत का भी,
#रज़ा अपने घर चला गया, वो अपने घर गई।

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