जीवनसंगिनी कोई और बनने जा रही है, मुझसे कह रहा था, तुम्हारा विचार बताओ, मेरी चुप्पी के बाद हँसता हुआ बोला, मैं परख रहा था, मैं बेसुध सी बैठ गयी, अब इस घड़ी, परख कर करोगे भी क्या?
माना, बेहतरीन रचना हूँ ईश्वर मै आपकी, हर रिश्ते में अपनी जान लगाती हूँ, फिर भी हर बार तोड़ी जाती हूँ, आजमायी जाती हूं, गलत सामने वाला हो तब भी, मै चुप रहूं, ये समझाई जाती हूँ, फिर भी आपको लगता है, मै आपका अंश हूँ? तो में इस बात पर सवाल उठाती हूँ
अब ,भर चुकी हूँ मैं ,झूठे रिश्तों से, जानती हूँ हर शख्श की सोच, हाँ मगर, हँस के मिलती हूँ,सबसे, क्योंकि दौर मेरा जब आयेगा, हर कोई बिना बात करीब भी आयेगा, तब मैं अपनी बात कह पाऊंगी, सवाल जवाब सब मेरे होंगें, सबकी बोलती बंद कर जाऊँगी, रिश्तों को ताक में रख कर, मैं सबको उनकी औक़ात दिखाऊंगी