बहता चला गया जो तिनका नदी के प्रीत में उसकी धार के साथ!उसे पता ही नहीं था कि नदी तो समंदर में मिलने को बह रही है! -
बहता चला गया जो तिनका नदी के प्रीत में उसकी धार के साथ!उसे पता ही नहीं था कि नदी तो समंदर में मिलने को बह रही है!
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I will never got a confirm tickets! -
I will never got a confirm tickets!
तेरे लिए लिखूं?या मेरे लिए लिखूं?तू कह दे तो?हमारे लिए लिखूं?हिन्दी की हंसी में लिखूं!संस्कृत के संस्कार में लिखूं!उर्दू की मिठास में लिखूं!तू जो कह दे तो?मैं हमको हमारी बुंदेली की बुलंदी में लिखूं! -
तेरे लिए लिखूं?या मेरे लिए लिखूं?तू कह दे तो?हमारे लिए लिखूं?हिन्दी की हंसी में लिखूं!संस्कृत के संस्कार में लिखूं!उर्दू की मिठास में लिखूं!तू जो कह दे तो?मैं हमको हमारी बुंदेली की बुलंदी में लिखूं!
नए साल में कुछ नया हो ना होतारीखें जरूर नईं होंगी...तकदीरें बदलें ना बदलेंतस्वीरें जरूर नईं होंगी...! -
नए साल में कुछ नया हो ना होतारीखें जरूर नईं होंगी...तकदीरें बदलें ना बदलेंतस्वीरें जरूर नईं होंगी...!
आज-कल ख़ुद के कुछेकमजबूत उसूल बना रहा हूं।फिजूल लगता हूं जिन्हें मैंउनसे अब दूरी बना रहा हूं। -
आज-कल ख़ुद के कुछेकमजबूत उसूल बना रहा हूं।फिजूल लगता हूं जिन्हें मैंउनसे अब दूरी बना रहा हूं।
हवा पानी सब अच्छा हैपर मौसम अनुकूल नहीं।बीज प्रेम के बोए हमनेउनके मन में नमी नहीं। -
हवा पानी सब अच्छा हैपर मौसम अनुकूल नहीं।बीज प्रेम के बोए हमनेउनके मन में नमी नहीं।
--: प्रेम ऋतु :--हवा पानी सब अच्छा हैपर मौसम अनुकूल नहीं।बीज प्रेम के बोए हमनेउनके मन में नमी नहीं।अंकुर फूटे जब प्रीत कातब उनको भी नींद नहीं।पुष्पित हों पुष्प अभी हीहम इतने तो अधीर नहीं।होगी ऋतु वसंत भी अबआशा में कोई कमी नहीं।यह मौसम बदले ही ना प्रकृति में ऐसी रीत नहीं। -
--: प्रेम ऋतु :--हवा पानी सब अच्छा हैपर मौसम अनुकूल नहीं।बीज प्रेम के बोए हमनेउनके मन में नमी नहीं।अंकुर फूटे जब प्रीत कातब उनको भी नींद नहीं।पुष्पित हों पुष्प अभी हीहम इतने तो अधीर नहीं।होगी ऋतु वसंत भी अबआशा में कोई कमी नहीं।यह मौसम बदले ही ना प्रकृति में ऐसी रीत नहीं।
उनमें लखनऊ शहर की नज़ाकत है।जिनकी हर इक खूबी में हकीकत है।।हमारी सम्पूर्ण बनावट महोबा जैसी।पानी कड़वा-कड़वी जबां वसीयत है।। -
उनमें लखनऊ शहर की नज़ाकत है।जिनकी हर इक खूबी में हकीकत है।।हमारी सम्पूर्ण बनावट महोबा जैसी।पानी कड़वा-कड़वी जबां वसीयत है।।
वक्त बेवक्त ही सही कुछ तो वक्त निकाला करो।मुलाकातें ना सही कुछ बातें ही कर लिया करो।।चाहने वाले बहुत हैं तुम्हारे यह भी मालूम है हमें।कम से कम किंचित् को भी तो उनमें गिना करो।। -
वक्त बेवक्त ही सही कुछ तो वक्त निकाला करो।मुलाकातें ना सही कुछ बातें ही कर लिया करो।।चाहने वाले बहुत हैं तुम्हारे यह भी मालूम है हमें।कम से कम किंचित् को भी तो उनमें गिना करो।।
जब कोई पूछता है भारत का विचार मुझ सेसंविधान की प्रस्तावना पढ़ देता हूं मैं गर्व से। -
जब कोई पूछता है भारत का विचार मुझ सेसंविधान की प्रस्तावना पढ़ देता हूं मैं गर्व से।