शहर अपना है ! तुम जलाते क्यों हो , ख़ुद ही अंधेरे के पास जाते क्यों हो माना मजबूरी है कुछ काम भी रहते होंगे लेकिन वो जिन्दगी से बढ़कर है ये जताते क्यों हो कुछ दिन की बात है हम साथ होंगे इस से पहले मौत को पास बुलाते क्यों हो शहर अपना है यही रहेगा तुम घूम कर ये बात बताते क्यों हो जिन्दगी रही तो ये जहान अपना है इतनी-सी बात भी ख़ुद को समझाते क्यों हो शहर अपना है तुम जलाते क्यों हो ।