Ravinder Kaur  
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Joined 27 September 2020


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17 HOURS AGO



हर सुबह  की  अपनी  कहानी  है 
फुर्सत से तुझे शाम को सुनानी है 

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19 HOURS AGO

कभी इत्तीफाकन मुलाक़ात हो जाए 
तो यही तमन्ना होगी कि तुझमें मुझे तू मिले 

माना कि बुलंदियों से मुझे गुरेज़ है लेकिन 
हद से ज्यादा गिरना तुझे भी पसंद न होगा

हम वो नहीं जिन्हें तलब है दौलत या रुतबे की 
बात हो उसी लहजे में ताकि मैं तुझे पहचान सकूँ  

हम बेताब हैं एक दरिया का निशां ढूँढने के लिए  
इसलिए बार-बार ख़ुद को समंदर में डुबा रहे हैं   

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4 MAY AT 13:23

 

ही कब था 
जो कहना चाहिए था
मुझे   


जो भी बस अपना 
फैसला थोप दिया 
मुझपर

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4 MAY AT 12:08


छोटी-मोटी बातों से होते नहीं निराश अब हम
मुझे रुलाने के लिए तेरी नाराज़गी ही काफ़ी है    

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2 MAY AT 21:46



दिल की बातें दिल  तक ही क्यों रह जाती हैं 
आज भी याद तुझे करके ऑंखें भर जाती हैं 

जाने क्यों तेरे लफ़्ज़ों ने इस दिल पे दस्तक दी
उठते हैं कदम भी  मगर उलझनें  बढ़ जाती हैं 

ना कोई हमसफ़र ना कोई दोस्त है अब यहाँ 
वक़्त की हवाओं से ये पत्तियाँ  उड़ जाती हैं

दूर  से  ही  कभी  सुनते  इस दिल  की  धड़कन
कि पास आने के डर से भी ये साँसें थम जाती हैं

तू जो खफ़ा है तो ख़ुद से क्या शिकायत मैं करूँ.
बातें जो बन नहीं सकती हैं दिल में दब जाती हैं

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2 MAY AT 8:33



ज़िन्दगी एक पहेली है सुलझ जाएगी 
रात कितनी भी अँधेरी हो बीत जाएगी

शाम होते ही परिंदे घर लौट आएंगे 
ना भी आएं तो कोई शाख़ किधर जाएगी

बरसे बिना भी गुजरेंगे बादल जिस पल   
कहीं बारिश तो कहीं बिजली ही गिर जाएगी 

कारवाँ साथ चले और ज़माना पीछे
राह कोई मंज़िल की भी तन्हा ही रह जाएगी

आँखों में ओस रुखसार पे सूरज की लाली
भोर के बाद ये आब-ओ-हवा बदल जाएगी

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2 MAY AT 8:23

वक़्त को जीतने वाला
सबका मीत बन जाता है
और वक़्त से हारकर
रह जाने वाला
अतीत बन जाता है

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30 APR AT 22:00

किधर जाना है तुमको  ये किसी से ना कहना  
वरना कोई साथ चलने के बहाने ही रास्ता रोक देगा    


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28 APR AT 22:19



आँखों ही आँखों में गुफ़्तगू किया करते थे 
वो भी दिन थे जब हम तुम मिला करते थे

तेरे नाम पर ही मैंने कितने ख़त लिख डाले
दुनिया के डर से तुम छुपके पढ़ा करते थे

याद जब तेरी आती है नदी आँखों से बहती है 
सूखे-सूखे सहरा पर जाने क्यूँ हम हँसा करते थे

दोस्ती बदली मुहब्बत में कैसे कब और कहाँ 
हरपल हम दोनों बस बातें यही सोचा करते थे

बिछड़के मौत भी ना आई जुदाई ऐसी है आई 
जाने कैसे हम एक दूजे के लिए जिया करते थे

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28 APR AT 13:44



उतने दर्द न मिले अतीत के काँटों से   
जितने जख़्म एक ताज़े फूल ने दिए     

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