काँटे भी मिलें तो फूलों-सा बाँट देता हूँ,
अपने हिस्से का दर्द चुपके से पी जाता हूँ।-
यादों में जीता, खुद को पाया 🌙
दर्द ही सिखाता, उम्मीद बनाय... read more
ज़मीर इतना है कि किसी का दिल न दुखाऊँ,
इसीलिए अपनी तन्हाई में अक्सर रो जाऊँ।-
इंटरनेट पर तेरी झलक ने दिल को हिला दिया,
अगर ये तेरी मर्ज़ी के बिना है तो मैं तेरे साथ हूँ,
वरना शुक्रिया कि तुम जहाँ भी हो, ठीक हो।-
देश के सबसे बड़े फेकू प्रधानमंत्री जी को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ। आप वैसे ही युवाओं के सपनों और मेहनत को अपने दिखावे और झूठे वादों की चक्की में पिसते रहे हैं। शिक्षा, रोजगार और भविष्य की उम्मीदों को कुचलना आपकी दिनचर्या बन चुका है। देशवासियों की आँखों में धूल झोंकना और खुद को महान दिखाना आपका स्थायी उद्देश्य है। इतिहास आपको केवल जुमलों और भ्रम फैलाने वाले नेता के रूप में याद रखेगा।
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न मंदिर, न मस्जिद, न कोई मठ-द्वार है,
इंसानियत से बड़ा न कोई त्यौहार है।
हिंदू, मुसलमां, बौद्ध या ईसाई कहो,
सबसे बड़ा धर्म बस "मानवता" का आधार है।
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आत्मा की यात्रा अनंत है,
शरीर बस वस्त्र बदलते हैं।
कर्मों की छाया संग चलती,
सुख-दुख जन्म में फलते हैं।
पूरनजनम का यही संदेश,
सत्य अमर आत्मा कहती है।-
इस दुनिया में सगा कोई तो नहीं है—
बस इक साया, जो जिंदा है, वही मुसाफिर,
मेरी मय्यत पर सब आएँगे साया-साया।-
जो रहकर भी अधूरा हो, वही इंसान गर्म होता है,
क्योंकि हर दफ़ा टूट कर फिर से, अपना उदय बनाता है।-
जो पल बीत गए, उन्हें पीछे छोड़ आया,
अब केवल आत्मा का दीप जलाऊँगा।
खुद को प्रज्वलित कर, अंधकार को रोशन करूंगा,
पुराने दर्दों को राख में बदल, नई राह अपनाऊँगा।
अकेलेपन की रात में, उम्मीद की लौ सजा लूंगा,
हर गिरावट से सीख लेकर, खुद को फिर से उभारूंगा।
मोह-माया की जंजीरों से मुक्त,
सिर्फ आत्मा के संगीत में जीवन को संवारूंगा।-
सुनो, प्रेम नहीं करूँगा,
मैं लौट रहा हूँ अपनी साधना की ओर।
इस दुनिया की भीड़ में खो जाना,
मुझे अब और मोह-माया भाएगी नहीं।
गंगा घाट पे सफेद वस्त्र पहन,
मैं अपनी आत्मा की शांति खोजूँगा।
जो पल बीत गए, उन्हें छोड़ आया,
अब केवल आत्मा का दीप जलाऊँगा।-