ravi tiwari  
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Joined 3 January 2017


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27 APR AT 12:45

मैं खोया था मदहोश ख्यालों में ....
जागती नींदों के बिखरे सवालों में
हाँ खुश नहीं था....पर हंसने की कोशिश करता था
जहाँ वो मुस्कुरा सके...वह खुशी को खोजा करता था,

क्यों वो एक दिन, तुम मिले......मेरे ना आने पे
जुबां ख़ामोश थी, क्यों टटोला मुझे....किसी बहाने से
आँखें बह गई...कहाँ ये तुझसे झूठ बोला करती थी
सब जान गए तुम....बिना लफ़्ज़ों के कुछ कह पाने से,

हाँ नाराज़.....वो है अब
की धड़कन भी ना छुपा करती थी
चुभती.....वो हर हंसी
जो उससे झूठ बोला करती थी,

खैर.. मान जाएंगे वो
कि रूठना-मनाना ही...हमारा रिश्ता है
ये इश्क गहरा है..... वो लोट आयेंगे
फिर इस दिल के माफीनामे से।

-


20 APR AT 22:45

कुछ यूं
सब दिल में बसा रहे है
जो कभी...सिर्फ तकलीफ देती थी
उसे आदत...अब अपनी बना रहे है,
पहले कभी जो ये आँखें
हारकर....
सब कुछ बयां कर देती थी,
कितनी आसानी से..... वो मुस्कुराकर
इस जिंदगी को....
अब हर पल हरा रहे है।

-


18 APR AT 22:46

" वो तीमारदार "

अटकता है.. थोड़ा भटकता है,
कभी समझता है...कभी समझाता है,
हाँ चल रहा है...कभी भाग रहा है,
ना रुक पाता है...
बस ठहरना चाहता है,
एक तराजू जो
बस गया उसके अंदर....
सवाल सुनकर
कुछ जवाब बनाता है,
कितना रखना है,
कितना बताना........ सबसे
ये हिसाब...वो दिल में दबाता है।

-


18 APR AT 1:18

" तारीख "

एक लकीर खिच गई है
एक फांस बन गई है
खुद बनाती ....खुद तोड़ती
अनसुलझी आस बन गई है
पास आती है ...ये डराती है
सिले हर घाव... खोल जाती है
गहरा कितना भी.... जो दफ़नया हो
वो हर याद... खोद लाती है

वक्त मेरा आज उससे टकराया है
ताज़ा जख्म जो इससे खाया है
वो कुरेदता...मैं संभालता
खुद के आशूओं से
अपनों को बचाया है,

जो आया है... अब ये गुजर जाएगा
शायद फिर से सब वहीं ठहर जाएगा
पर कमबख्त.... अगर वो
वजूद लौटा नहीं
की तकलीफें.... लौटकर
फिर से ये दे जायेगा ।

-


13 APR AT 22:30

---कि जब
वो यादों के टुकड़े
अब चुभते है इसको
गुजरते वक्त से घिसकर
पैने...जो हो गए है,
फिर भी ये क्यों
पुरानी तस्वीरों में खोजता
वो रिश्ते.....जो
जमी धूल में
मैले...अब हो गए है।

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10 APR AT 11:25

" "
चीखकर सूख गया है
छोटी खुशियाँ भी निगल पाता नहीं
रो कर थक गई है
चोट लगने पर भी आंसू बहाती नहीं
हारी ये असलियत अब
की आईना भी सच कह पाता नहीं
खुद एक परछाई बन गया है
कब बदल जाएगा
ये रोक पाता नहीं।

-


27 MAR AT 23:14

कई‌ मकान बनाये हमनें भी
इस मन कि अनगिनत गलियों में
कुछ कच्चे - कुछ पक्के से
तो कई महलों से सजाए रखे है,

रहती जहां चहल-पहल
कि खुशियाँ घड़ी ना जब देखा करती थी
अरसा गुजर गया
कि मानो पता भुलाये बैठें है,

जाल इंतजार बुनते गए
यादें बंद हो गईं.....वीरान तालों में
संजोए रखा है सभी कुछ
फिर भी बंजर हो जाया करते है,

ऐसा नहीं कि मिलते कभी
यें आँखें ...अक्सर टकराती है
वो गलियां अब सूनी पड़ी
कि मन में दूरियां ...बनाए रखे है।

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16 FEB AT 22:51

जो अक्सर टकराता है
नहीं जानता हूं...ये हौसला
क्यों हर बार हारता है,
हां लड़ रहा हूं खुद से
फिर एक उम्मीद कि खातिर
पर....शायद वक्त अपनी दुआ में
मेरी बद्दुआ मांगता है,
खाए ज़ख्म कई मैंने भी इन मेहनत की सीढ़ियों पे
ऐसा क्या है जो मुझको हर बार नकारता है
ऐ खुदा... क्या तेरी ख़्वाहिश
जो रोका है तुने मुझको
क्यों उठाकर फिर मुझे... सिर्फ दर्द मांगता है।

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14 FEB AT 1:10

वो आंखें, वो मुस्कान
थोड़ी सी दिल की सकपकाहट
पहली मुलाक़ात का जो डर है
वो शर्मीली हिचकिचाहट,
हारी कोशिशें पर वो मिलते गये
बढ़ी ये धड़कन.. है उनकी आहट,
हो वो सामने ...मन चिल्लाता है
दूं में कैसे खुद को इजाजत,
वक्त गुजरता गया हम चलते रहे
मिली फिर दोस्ती की हमें विरासत,
हां कह दिया सब
जो मन में था
ना रखी कोई हिचकिचाहट,
है जुड़ गया
अब वो दिल... मुझसे
की थी जिसकी... मैंने चाहत
हां जीना है...अब उस रिश्ते को
कि थी दिल ने जिसकी हिफ़ाज़त।

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11 FEB AT 10:23

ना सवाल...ना जवाब
बस एक ख़्वाहिश इसकी रहती है
मतलबी मैं नहीं
ये आदत मेरी रहती है,
हुआ क्या या होगा अब
क्यो चुप जुंबा उनकी रहती है,
क्यो वो बातें ...उनकी नाराजगी
अब दबी-दबी रहती है,
नहीं जनाना है इसको
वो बातें.....जो दर्द दे उन्हें,
देख मायूसी उनके चेहरे पर
ये अक्सर डरी रहती है,
........................
जो अगर तुम मिल गए....
किसी रोज़ एक पल में भी
लौटा दू वो मुस्कान
ये कोशिश लगी रहती है,
ना सवाल...ना जवाब
बस एक ख़्वाहिश इसकी रहती है
मतलबी मैं नहीं
ये आदत मेरी रहती है।

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