Ravi Srivastava   (Writer Ravi)
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Joined 8 December 2019


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13 NOV 2021 AT 0:34

नफरतों के बाजारों में हम बिक गए ऐसे,

मुहब्बत दिल में मेरे थी मगर समझा नहीं कोई।

खुशी औरों देकर तो गम़ के घूट पी डाले,

मेरे जज्बातों को लेकिन मगर समझा नहीं कोई।

©®रवि श्रीवास्तव

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11 JUL 2021 AT 22:35

कभी कभी ईश्वर आइना दिखाता है

समझो तो समझो नहीं उसका क्या जाता है

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15 JUN 2021 AT 0:33

खुद ग़र्ज़ इतना है जमाना क्या बताऊँ मैं तुम्हें 

प्यार के हैं किस्से अधूरे क्या सुनाऊँ मैं तुम्हें।

जब गिरे आंसू तो उनके दर्द से मैं कराह उठा

ज़ख्म दर्द-ए दिल मिला क्या दिखाऊँ मैं तुम्हें।

इक सुहानी याद दिल में बस गई है इस क़दर

नफरतों की इस आग में क्या भुलाऊँ मैं तुम्हें।

है ख़फा जब ज़िंदगी तो अश्क नदियों से बहे

रूठकर तुम यूँ  गये  हो, क्या मनाऊँ मैं तुम्हें।

बस बिखरते ख़्वाब को, हमनें संजोए था रखा

इश्क तुमसे है तो जाना, क्या जताऊँ मैं तुम्हें।


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21 MAY 2021 AT 14:35

बड़े मगरूर हो  साहब,  तमाशा  खूब  देखा  है।

जाने चौसर में तुमने, क्या पांसा  खूब  फेंंका है?

तड़पकर मर रही जिंदगी मगर तुम ध्यान न देना
rs
जलती  हुईं  चिताओं  पर  रोटियां  खूब सेका है।

भरोसा  था  जो  तुमपर  अब भरोसा टूट गया है।

बड़ा  दुर्भाग्य  है  सबका  न  जाने  कैसी रेखा है।

लगाकर  आस  बैठे  थे  कि  अच्छे  दिन  आएंगे
rs
हुए  हैं  ख्वाब   चकनाचूर  यह   कैसी  लेखा  है।

कभी  आइने  में  अपनी  सूरत  देखना  तुम  भी

मजलूमों  के सहारों का कहाँ और कौन ठेका है।

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20 MAY 2021 AT 22:41

यादें मिट्टी में दफन हो गई

बातें उसकी कफन हो गई

जिंदगी से गुफ्तगूं करते रहें

मौत तो अपनी सनम हो गई।

©®रवि श्रीवास्तव

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19 MAY 2021 AT 16:40

कभी जवाब देना कभी ख्वाब देना

नशा उतार आया  मुझे शराब  देना।

अभी उधार मांगा कभी हिसाब देना।
rs
पढ़ी किताब मैंने ,मुझे लिवास  देना।

बड़ा मज़ाक देखा, मुझे विश्वास देना।

यहाँ तगार खाली, वहाँ खिताब देना।

बना समाज कैसा,बड़ा लिहाज देना।

बड़ा नवाब आया, ज़रा दिमाग देना।

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27 APR 2021 AT 0:16

यह जिस्म ही तो है क्यों करें अभियान

Rs

मिट्टी का है बना क्यों इसपर है गुमान ?

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27 APR 2021 AT 0:12


आज शक्ल आइने में देखी है मैंने

rs

सारे गुमान को मिट्टी में मिला दिया

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11 APR 2021 AT 23:25


लंबी लंबी बातें करते
जुमलों की आहें भरते
सबको कहते दो गज दूरी
लाखों में वो रैली करते।
कोरोना भी डरता उनसे
खिलवाड़ किया है कसम से
लाखों केस रोजाना आते
rs
भीड़ लोगों की वो जुटाते
कहते 2 गज दूर है रहना
मन की बातों का क्या कहना
विषाणु देश में फैल रहा है
जिंदगी से कोई खेल रहा है
फर्क नहीं पड़ता है साहेब
देश दुर्दशा झेल रहा है
सुधर नहीं पाईं सुविधाएं
कैसे तुमको व्यथा सुनाएं?
राजनीति से हठकर सोचो
बहते आंसू को भी देखो

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28 MAR 2021 AT 23:47

लाल लाल गुलाल है लाल लाल गाल है

लाल रंग का यह कैसा नशा छाने लगा।

भरके पिचकारी जब मारी तुमने सनम,

उड़ते गुलाल का फिर मजा आने लगा।

आज रंग देंगे तेरे कोमल से बदन को,

होली संग प्यार गीत मैं तो गाने लगा।
rs
छुप छुपकर क्यों सता रही यूं मुझको

गुलाल लगा मुखड़ा तो मुझे भाने लगा।

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