रास्तो में जो ये भीनी सी रौशनी है
जुगनुओं ने इसी से अपनी राह बुनी है
ठहर जाना यूँ आसान होता है न कभी
पर कभी-कभी तो सिर्फ खुदा की मर्जी चली है-
कई अरसों तक छिपा रहा चाँद अंधेरे की जद में
महफूज़ रहे यही ज़िद थी उसकी बस-
शीर्षक : जंग ए जिंदगी
उठ मनुष्य तू जाग अभी
रण से ऐसे ना भाग अभी
राहों में खड़े जो पत्थर है
वो केवल तेरे मिथक भर है
गिरने से न घबरा अभी
उठ मनुष्य तू जाग अभी
तेरा व्यख्यान हर आयात में
तू ही रचता महाभारत है
रामायण का तू प्राण है
तू खुद में ही महान है
विगुल बजा इस मझधार में
बन अर्जुन तू हार में
जो लगे व्यूह बड़ा तुझे
कर रथ पर कृष्ण सवार अभी
उठ मनुष्य तू जाग अभी
रण से ऐसे ना भाग अभी
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जरूरी है क्या हर आरज़ू को स्याही में पिरो दूँ,
अगर इतना अनजान है मुझसे तो इश्क़ कैसा-
एक गौरैया गिद्दों के झुंड में बस गयी
जहन में उसके बस आज़ादी थी
ऊंचे ऊंचे आसमान छूने की
यही वजह थी झुंड में आने की
झुंड में जाते ही गिध्द उस पर टूट पड़े
किसी एक को गौरेया से प्यार था
उसने जकड़ दिया उसे बेड़ियो से
लाया एक मोटा सा ताला
लगा दिया उसके पिंजरे पे
करने लगा हिफाज़त उसकी दिन रात
नाम दे दिए पहरे को इश्क़
और चाहे हो सर्द रात
या हो मानसून की बरसात
गौरेया महफूज़ थी सलामत थी
पर कीमत थी इस चीज की
उसकी आज़ादी ।
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हवाओं के शोर में
गुनगुना छोड़ दे
जो कस्ती लगे डूबने
तो ज़ोर लगाना छोड़ दे
ये जो ऊंचे ऊंचे पर्वत
तेरे जहन में मंजिल बन है
सारे गुरुर और सपनों को छोड़
एक महफूज़ आशियाना ढूंढ ले
दिल लग जाये किसी चीज से
जरूरी नही की वो ज़िद पूरी हो
खुशबू को याद बना ले ठीक है
पर इत्र लगाना छोड़ दे
मंजिल न तो सिकन्दर को मिली
ना ही तुझे मिलेगी
लड़ लिया ये ही काफी है
पर जीत की ज़िद तू छोड़ दे
उम्र काफी है मुसाफिर तो बन जरा
जंजीरो को तोड़ और जग को जीत ले।
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पत्तों को थामो जरा साफ कर दो
सावन की बूंदों को आज़ाद कर दो
वो हस्ती जो समुंदर में सहम कर रहती है उसे कहो
लहरों से बिन डरे , तैर के दरिया पार कर लो
डर के अंधेरो में जो तुम्हे भूत दिखते है
फूको उजालों को ये वहम समाप्त कर दो
जो खत में लिखे अल्फ़ाज़ दराज में रखे है
उनको सही पते पर भेज इश्क़ आज़ाद कर लो
मुश्किल है पर देर से से सही तैर के दरिया पार कर लो-
कई ख्वाबो से उलझ जाता हूँ
ए जिंदगी खुद को अब
बड़ा उदास पाता हूँ
अगर मुसाफिर मैं हूँ तो
सफर भी तो तय कर लिया न,
पर मंजिल कभी न पाता हूँ।
ए जिंदगी तुझसे हमेशा उलझ जाता हूँ।-
साथ तेरा एक हसीन ख्वाब रहा
तेरी उँगली थामे भी आज़ाद रहा
जो धड़कन दिल मे धड़कती
उसे तेरा हर किस्सा याद रहा ।
पर अच्छा न लगा तेरा अलविदा ।-
इक तिनका उठा लाया मैं
अपने घौसले को बनाने को
नींद काफी नही मेरे लिए
ये घर बनाया है अपने ख्वाब जगाने को
यहाँ अंधेरे बड़े गहरे है
चाँद पर कई पहरे है
पर कभी चाँद को थकते देखा है
अंधेरो में उसे रोते बिलखते देखा है
रौशनियाँ नही है तो दीवार लाँघ दो
जो वो भी न हो तो उन्हें दरारों से ताक लो
लौ भी तुम हो, तुम ही मशाल हो
अंगारों पर चलना सीख लो
और खुद को सवेरे बाँट लो
इक तिनका काफी है आशियाना बनाने को
ये गांठ तुम मन मे बांध लो
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