कोई तूफ़ान गुज़रा हो घर से जैसे,
हर कोना सहमा है इसका ऐसे।-
जिन बच्चों की पसंद, बचपन में किसी ने न सुनी,
बड़े होकर वो सबसे कहते हैं कि उन्हें सब पसन्द है।-
हमको तुमको
एक-दूसरे की बाहों में
बँध जाने की
ईद मुबारक।
बँधे-बँधे,
रह एक वृंत पर
खोल-खोल कर प्रिय पंखुरियाँ
कमल-कमल-सा
खिल जाने की
रूप-रंग से मुसकाने की
हमको तुमको
ईद मुबारक
(केदारनाथ अग्रवाल)-
उगते सूरज से पूछता हूं,
दिन-दिन का ये फेरा क्यूं है,
चमकते चेहरों के सीने में, यूं अंधेरा क्यों है?-
बड़े शहरों में अब सर्दियां नहीं टिकतीं;
वो गुज़र जातीं हैं, पक्की सड़कों,
मोटरों और ऊंची इमारतों के बीच से,
ढूंढती हुई खुले मैदान, अधपकी फसलें,
और मिट्टी के चूल्हों की गर्माहट।
अफ़सोस! अब कच्चे चूल्हे
जल्द ठंडे पड़ने लगे हैं, और सर्दियां गर्म...
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बहुत समझदार लोगों से भी इश्क़ नहीं हो सकता,
उनसे हो सकती हैं, इश्क़ पर बातें,
इश्क़ पर तर्क, जुमले वगैरह;
पर इश्क़ नहीं हो सकता।
क्योंकि इसे करना अत्यंत सरल है।-