Ravi Pratap   (रवि विचारक)
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Research scholar (IITBHU)
Joined 13 March 2018


Research scholar (IITBHU)
Joined 13 March 2018
11 JUN 2022 AT 8:22

चलो एकबार फिर से, खुद को आजमाया जाए।
ये मुर्दों का शहर है,शोर कब तक मचाया जाए।।
यहां दोस्ती वोस्ती प्यार व्यार की कोई कीमत नहीं मिलती।
चलो ये दुकान कही और लगाया जाए।।

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5 JAN 2022 AT 16:37

कैरेक्टर में वजन होना चाहिए।
बातो से तो हर कोई शहंशाह है।
मुस्किले रास्ते बनाती है।
काबिलियत साबित करने के लिए।।

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5 JAN 2022 AT 16:30

जब बात होगी तो ज्यादा से ज्यादा क्या बात होगी।
पूरी जिंदगी बस एक सांस का झमेला है।
जब तक है सब कुछ है।
नही है तो कुछ भी नही है।।

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9 OCT 2021 AT 0:39

बहस होगी अब मेरे मौत पर।
गुनेहगार को नजरबंद करके।
तमाशा बन गए हमलोग।
सिरमौर उन्हें सौपकर।।

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25 SEP 2021 AT 2:20

दोस्ती में वो बात नहीं, जो बचपन की नादानी में थी।
बात बात में अब शक करते है, बचपन में ना ये बीमारी थी।
कैसी मारामारी है, अबजब हम्मे समझदारी है।

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23 SEP 2021 AT 2:22

जुबां से क्या बोले,मेरे हालात ही काफी है।
समझने के लिए, बस अहसास ही काफी है।

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7 MAY 2021 AT 4:11

आज वक्त ही वक्त पड़े है।
रास्ते सुनी पड़ी है, गलियां सुनी पड़ी है।
नजरे जिधर भी घूमती है।
मुरझाए से चेहरे खड़े है।
आज......


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7 MAY 2021 AT 4:03

जिंदगी में हजार बार मरने से कही अच्छा है।
एक बार खुद को जला दो अपनी मंजिल के लिए।।

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17 APR 2021 AT 3:52

अब हालातो को क्या संभालना।
जब जिंदगी बेआबरू हो चली हो।
जिसे सौंपा था अपनी हिफाजत का जिम्मा।
वो ही अब मौत के सौदागर बने फिर रहे है।।

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17 APR 2021 AT 3:47

क्या इंसानियत समझना इतना कठिन हो गया है।
आज के इस दौर में।
चिताएं जल रही है और अब भी बात चुनाव के ।
किए जा रहे है।।

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