मैं अकेलापन चुनता नही
स्वीकार करता हूं...!-
जिसे पढ़ तो सब ले
मगर समझ सिर्फ तुम सको... read more
छुपते छुपाते हीं, आ जाओ अब, कोई नहीं है।
इश्क़ हीं इश्क़, बेहिसाब है, कोई नहीं है।।
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मैं ने कहा कि देख ये मैं ये हवा ये रात ये बारिश
उस ने कहा कि मेरी पढ़ाई का वक़्त है
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बुरा या अच्छा देखना तो तुम्हे दोनो पड़ेगा"
आखिरकार तुम्हे भी तो "जज "करना पड़ेगा.!-
थोड़ा सबक था मेरे लिए
पर वो इश्क था या वहम,जो भी था ,
बेहतरीन था अगर मैं अपने इगो को संतुष्ट करने की
कोशिश karu तो सायद वो एक धोखा था ,
लेकिन जो भी हो बेहतरीन था,,
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कुछ इस तरह गुज़ारा है ज़िंदगी को हम ने,
जैसे कि ख़ुद पे कोई एहसान कर लिया है...!
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काटने दौड़ते है अब मुझे मेरा ही कमरा मुझे
ऐशा लगता है दीवारों पर से भी छीन गया हो ,
हक मेरा ,वो दरवाजे वो खिड़कियां मानो जैसे चिडा
रही हो मुझे,हा ये मेरी ही किताबे है ,जिनको छुए जैसे
अरसे हो गए ,हा कुछ लिखा भी करता था मैं ,यू ही कुछ इधर
कुछ उधर की बातें,अब तो कुछ न एहसाह होता है न कोई लफ्ज़ ..
जबां तक आती है,बस अपने ही खयालों से भटक चुका हूं..!
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अब तो ख़ुद अपनी ज़रूरत भी नहीं है हम को..
वो भी दिन थे कि कभी तेरी ज़रूरत हम थे...!
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